2. कवयित्री ललद्यद किससे क्या खींच रही है?
Answers
Answer:
कवयित्री परमात्मा को साहब मानती है, जो भवसागर से पार करने में समर्थ हैं। वह साहब को पहचानने का यह उपाय बताती है कि मनुष्य को आत्मज्ञानी होना चाहिए। ... वाख में 'रस्सी' शब्द मनुष्य की साँसों के लिए प्रयुक्त हुआ है। इसके सहारे वह शरीर-रूपी नाव को इस संसार रुपी सागर में खींच रहा है ।
Answer: कवयित्री जीवन की नाव को खींचने के जो प्रयास किए जा रहे हैं, उन्हें रस्सी कहा गया है। यह रस्सी कच्चे धागे से बनी होती है यानी यह बहुत कमजोर होती है और कभी भी टूट सकती है।
Explanation:
यह कविता साधारण रोजमर्रा की चीजों को उपमा के रूप में उपयोग करते हुए गूढ़ भक्ति का वर्णन करती है। नाव का अर्थ है जीवन की नाव। हम इस नाव को कच्चे धागे की रस्सी से खींच रहे हैं। कच्चे धागे की रस्सी बहुत कमजोर होती है और हल्के दबाव से टूट जाती है। हालाँकि, हर कोई अपनी जीवन नौका को अपनी पूरी ताकत से खींचता है। लेकिन इसमें कवि ने भक्ति के कारण अपनी रस्सी को कच्चे धागे की बताई है। भक्त के सारे प्रयास व्यर्थ जा रहे हैं जैसे कोई मिट्टी के कच्चे बोरे में पानी भरने की कोशिश करता है और वह इधर-उधर धुल जाता है।
भक्त यह सब इस आशा के साथ कर रहा है कि किसी समय भगवान उसकी पुकार सुनेंगे और उसे ब्रह्मांड के सागर को पार कर देंगे। उसके हृदय में बार-बार ईश्वर के समीप जाने की इच्छा उठ रही है।
#SPJ6