(2) नीलम की सी नीली आँखें, सोने से सुन्दर पर।
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नीलम की-सी नीली आँखें,
सोने से सुन्दर पर।
अंग-अंग में बिजली-सी भर,
फुदक रही तू फर-फर।
फूली नहीं समाती तू तो,
मुझे देख हैरानी।
आ जा तुझको बहन बना लूँ,
और बनूं मैं भैया।
मेरे मटमैले अंगना में,
फुदक रही गौरैया।
शब्दार्थ- पर – पंख फूली नहीं समाती = बहुत अधिक प्रसन्न हैरानी = अचम्भाः
सन्दर्भ – पूर्व की तरह।
प्रसंग-कवि गौरैया की सुन्दरता और उसकी चंचलता का वर्णन करता है।
व्याख्या-कवि कहता है कि इस गौरैया की आँखें नीलम मणि के समान नीली हैं। इसके पंख स्वर्ण के जैसे हैं। अपने अंग-अंग में यह बिजली के समान चपलता लिए हुए-फुर-फुरी करती हुई इधर से उधर फुदक रही है। इसकी चंचलता को देखकर मुझे अचम्भा हो रहा है, कि यह खुशी के मारे फूली नहीं समा रही है। हे गौरैया ! तू मेरे पास आ जा, मैं तुझे अपनी बहन बना लेना चाहता हूँ, साथ ही मैं तेरा भैया (भाई) बन जाने की कामना करता हूँ। यह गौरैया, मटमैले रंग के मेरे आँगन में इधर से उधर लगातार फुदक रही है
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