2. “ पर अपने ही भीतर प्रतीति नही होती है की मैं किसी का हूँ या कोई मेरा है ।" अ) रचना का नाम लिखो। आ) लेखक को ऐसा प्रतीत क्यों होता है?
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कूदना न हो तो बड़ा बुरा मालूम होता है। मैं भीतर हुड़क रहा था। दो-एक दिन. ही तो कूद ...
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जब बस चालक ने इंजन स्टार्ट किया तब सारी बस झनझनाने लगी। लेखक को ऐसा प्रतीत हुआ कि पूरी बस ही इंजन है। मानो वह बस के भीतर न बैठकर इंजन के भीतर बैठा हुआ हो। अर्थात् इंजन के स्टार्ट होने पर इंजन के पुर्जो की भांति बस के यात्री हिल रहे थे।
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