Hindi, asked by jagdishsinghrana1111, 2 months ago

2. unseen passage


स्वार्थपरता अर्थात् स्वयं के संबंध में पहले सोचना ही सबसे बड़ा पाप है। जो मनुष्य पहले यह सोचता है कि मैं
पहले खा लूं मुझे ही सबसे अधिक धन मिल जाए, मैं ही सर्वस्व का अधिकारी बन जाऊँ, मेरी ही सबसे पहले
मुक्ति हो जाए तथा मैं ही औरों से पहले सीधा स्वर्ग चला जाऊँ, वह निश्चय ही स्वार्थी है। निस्वार्थी व्यक्ति कहता
है कि मुझे अपनी चिंता नहीं है मुझे स्वर्ग जाने की आकांक्षा नहीं है, यदि मेरे नरक में जाने से किसी को लाभ
मिल सकता है तो मैं उसके लिए भी तैयार हूँ। यह निस्वार्थता ही धर्म की परीक्षा है। जिसमें जितनी अधिक
निरस्वार्थता है बल उतना ही अधिक आध्यात्मिक है।
स्वार्थपरता का क्या अर्थ है?
स्वार्थी व्यक्ति क्या सोचता है?
निस्वार्थी व्यक्ति स्वार्थी व्यक्ति की तुलना में अधिक श्रेष्ठ कैसे है?
विलोम शब्द गद्यांश से चुनकर लिखो।
पुण्य
हानि​

Answers

Answered by shaurypandey32
1

Answer:

पुण्य का पाप

हानि का लाभ।

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Answered by masabu158
0

Answer:

पुण्य का पाप

हानि का लाभ

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