2. विभिन्न राजकोषीय प्रणालियों में राज्य की आर्थिक क्रियाओं की विवेचना कीजिए।
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Answer: राजकोषीय नीति के अभिप्राय, साधारणतया, सरकार की आय, व्यय तथाऋण से सम्बन्धित नीतियों से लगाया जाता है। प्रो0 आर्थर स्मिथीज ने राजकोषीयनीति को परिभाषित करते हुए लिखा है कि- ‘‘राजकोषीय नीति वह नीति हैजिसमें सरकार अपने व्यय तथा आगम के कार्यक्रम को राष्ट्रीय आय, उत्पादनतथा रोजगार पर वांछित प्रभाव डालने और अवांछित प्रभावों को रोकने के लिएप्रयुक्त करती है। इस सम्बन्ध में श्रीमती हिक्स (Mrs. Hicks) का कहना हैकि ‘‘राजकोषीय नीति का सम्बन्ध उस पद्धति से है जिसमें लोक-वित्त के विभिन्नअंग अपने प्राथमिक कत्त्ाव्यों को पूरा करने के लिए सामूहिक रूप से आर्थिकनीति के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए प्रयोग में लाये जाते हैं।’’
उपर्युक्त परिभाषा के अनुसार, अर्थव्यवस्था में सर्वोच्च उद्देश्यों की प्राप्ति केलिए राजकोषीय नीति व्यय, ऋण, कर, आय, हीनार्थ प्रबन्धन आदि की समुचितव्यवस्था बनाये रखती है, जैसे-आर्थिक विकास, कीमत में स्थिरता, रोजगार, करारोपण,सार्वजनिक आय-व्यय, सार्वजनिक ऋण आदि। इन सबकी व्यवस्था राजकोषीयनीति में की जाती है। राजकोषीय नीति के आधार पर सरकार करारोपण करतीहै। वह यह देखती है कि देश में लोगों की करदान क्षमता बढ़ रही है अथवाघट रही है। इन सब बातों का अनुमान लगाकर ही सरकार करों का निर्धारणकरती है। व्यय नीति में भी वे निर्णय शामिल किये जाते हैं जिनका अर्थव्यवस्थापर प्रभाव पड़ता है। ऋण नीति का सम्बन्ध व्यक्तियों के ऋणों के माध्यम सेक्रय शक्ति को प्राप्त करने से होता है। सरकारी ऋण-प्रबन्ध नीति कासम्बन्ध ब्याज चुकाने तथा ऋणों का भुगतान करने से होता है। राजकोषीय नीतिआय, व्यय व ऋण के द्वारा सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति करती है। स्मरण रहे,राजकोषीय नीति और वित्त्ाीय नीति में अन्तर होता है। राजकोषीय नीति के अन्तर्गतमुख्य रूप से चार बातों को सम्मिलित किया जाता है:
सरकार की करारोपण नीति (Taxation Policy),
सरकार की व्यय नीति (Expenditure Policy),
सरकार की ऋण नीति (Public Debt Policy),
सरकार की बजट नीति (Budgetary Policy),
राजकोषीय नीति के उद्देश्य
किसी भी देश की राजकोषीय नीति का मुख्य उद्देश्य सैद्धान्तिक रूप से,क्रियात्मक वित्त प्रबन्धन (Functional Finance Managemnat) तथा कार्यशील वित्त प्रबन्धन की व्यवस्था करना है। दूसरे शब्दों में आर्थिक विकास के लिए आवश्यकएवं पर्याप्त मात्रा में धन की व्यवस्था करना राजकोषीय नीति का मुख्य कार्यहै। यद्यपि राजकोषीय नीति के उद्देश्य किसी राष्ट्र विकास के लिए उसकी परिस्थितियों,विकास सम्बन्धी आवश्यकताओं और विकास की अवस्था के आधार पर निर्धारितकिये जाते है फिर भी सामान्य दृष्टि से अल्प-विकसित एवं विकासशील देशोंकी राजकोषीय नीति के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित कहे जा सकते हैं :
पूंजी निर्माण –
अल्प विकसित देशों में प्रति व्यक्तिवास्तविक आय के कम होने के कारण बचतें बहुत कम होती हैं जिसकेफलस्वरूप विनियोग हेतु आवश्यक पूंजी का अभाव बना रहता है। निम्नआय, अल्प बचतें, कम विनियोग और निम्न उत्पादकता के कारण निध्र्मानता के दुष्चक्र (Vicious Circle of Poverty) जन्म लेने लगते है, जिनकोतोड़ना राजकोषीय नीति का प्रमुख उद्देश्य माना जाता है। चूंकि इनदेशों में आय के स्तर को देखते हुए, उपभोग की प्रवृित्त (Propensityto Consume) अधिक होती है इसलिए राजकोषीय नीति के अन्तर्गत करारोपणद्वारा चालू उपभोग को कम करके, बचत में वृद्धि करने के प्रयत्न किएजाते हैं, ताकि पूंजी निर्माण के लिए आवश्यक धनराशि प्राप्त हो सके।प्रो. रागनर नर्कसे का मत है कि-’’अल्प-विकसित देशों मे करारोपणनीति का उद्देश्य राष्ट्रीय आय में उसी अनुपात में वृद्धि करना है जोपूंजी निर्माण में लगाया जाता है।’’यदि अल्प-विकसित देशों में अनावश्यक उपभोग पर करारोपण द्वारावांछित रोक न लगायी जाए तो इसके कुछ घातक परिणाम होसकते है, जैसे-
देश में पूंजी निर्माण का कार्य या तो अवरुद्ध बना रहेगाअथवा अत्यन्त मन्द गति से होगा,
आर्थिक विकास के फलस्वरूप होने वाली आय वृद्धि पूर्णतयाउपभोग कर ली जायेगी,
देश की मुद्रा स्फीतिक दशाएँ उत्पन्न होने लगेंगी।
राष्ट्रीय आय में वृद्धि –
पूंजी निर्माणके अलावा राजकोषीय नीति का दूसरा महत्वपूर्ण उद्देश्य राष्ट्रीय आय मेंवृद्धि करना है। यद्यपि राष्ट्रीय आय वृद्धि और राजकोषीय नीति का केाईप्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं है तथा राजकोषीय नीति परोक्ष रूप से, राष्ट्रीय आयमें वृद्धि के लिए सहायक सिद्ध हो सकती है। इस दृष्टि से राजकोषीयनीति के अन्तर्गत सदैव इस बात का प्रयत्न किया जाना चाहिए कि-
करारापेण द्वारा प्राप्त बचतो का तत्काल विनियागे किया जाएगा
सावर्ज निक व्यय आरै सावर्ज निक ऋणों की अधिकांश मात्रा नव-निमार्णव विकास कायोर्ं की ओर गतिशील की जाए,
देश में निजी उद्यमकर्ताओं को कर छूट द्वारा अथवा वित्त्ाीय सहायताप्रदान करके, विनियोग करने के लिए प्रेरित किया जाए।यह ठीक है कि अल्प-विकसित देशों में नव-प्रवर्तन और उद्यमियोंका अभाव होता है। परन्तु प्रो. स्पैंगलर का मत है कि- यहनीति ‘‘ऐसे बहुत से साहसियों की कमी को पूरा कर सकती है।’’यदि राजकोषीय नीति का निर्धारण उपर्युक्त उपायों की दृष्टि मेंरखकर किया जाए तो निश्चित है कि इसमें विनियोजन कार्यको प्रोत्साहन मिलेगा जिससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि होगी।
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