2 veer ras poems in hindi with picture s needed urgent for home work pls help
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हाँ मैं इस देश का वासी हूँ, इस माटी का क़र्ज़ चुकाऊंगा
जीने का दम रखता हूँ, तो इस के लिए मरकर भी दिखलाऊंगा ।।
नज़र उठा के देखना, ऐ दुश्मन मेरे देश को
मरूँगा मैं जरूर पर… तुझे मार कर हीं मरूँगा ।।
कसम मुझे इस माटी की, कुछ ऐसा मैं कर जाऊंगा
हाँ मैं इस देश का वासी हूँ, इस माटी का क़र्ज़ चुकाऊंगा ।।
आशिक़ तुझे मिले होंगे बहुत, पर मैं ऐसा कहलाऊंगा
सनम होगा मेरा वतन और मैं दीवाना कहलाऊंगा ।।
माया में फंसकर तो मरता हीं है हर कोई
पर तिरंगे को कफ़न बना कर मैं शहीद कहलाऊंगा ।।
हाँ इस देश का वासी हूँ, इस माटी का क़र्ज़ चुकाऊंगा ।
मेरे हौसले न तोड़ पाओगे तुम, क्योंकि मेरी शहादत हीं अब मेरा धर्म है ।।
सीमा पर डटकर खड़ा हूँ, क्योंकि ये मेरा वतन है
ऐ मेरे देश के नौजवानों अब आंसू न बहाओ तुम ।।
सेनानियों की शाहदत का अब कर्ज चुकाओ तुम
हासिल करो विश्वास तुम, करो देश के दर्द का एहसास तुम ।।
सपना हो हिन्द का सच, दुश्मनों का करो विनाश तुम
उठो तुम भी और मेरे साथ कहो, कुछ ऐसा मैं भी कर जाऊंगा ।।
हाँ इस देश का वासी हूँ, इस माटी का क़र्ज़ चुकाऊंगा
ऐ देश के दुश्मनों ठहर जाओ…. संभल जाओ ।।
मैं इस देश का वासी हूँ, अब चुप नहीं रह जाऊंगा
आंच आई मेरे देश पर तो खून मैं बहा दूंगा ।।
क्योंकि अब बहुत हुआ, अब मैं चुप नहीं रह जाऊंगा
हाँ इस देश का वासी हूँ, इस माटी का क़र्ज़ चुकाऊंगा ।।
खून खौलता है मेरा, जब वतन पर कोई आंच आती है
कतरा कतरा बहा दूंगा, फिर दिल से आवाज आती है ।।
इस माटी का बेटा हूँ मैं, इस माटी में ही मिल जाऊंगा
आँख उठा के देखे कोई, सबको मार गिराऊंगा ।।
भारत का मैं वासी हूँ, अब चुप नहीं रह पाउँगा
अब चुप नहीं रह पाउँगा, अब चुप नहीं रह पाउँगा ।।
2......सलिल कण हूँ, या पारावार हूँ मैं
स्वयं छाया, स्वयं आधार हूँ मैं
सच है, विपत्ति जब आती है,
कायर को ही दहलाती है,
सूरमा नहीं विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते,
विघ्नों को गले लगाते हैं,
काँटों में राह बनाते हैं।
मुँह से न कभी उफ़ कहते हैं,
संकट का चरण न गहते हैं,
जो आ पड़ता सब सहते हैं,
उद्योग – निरत नित रहते हैं,
शूलों का मूल नसाते हैं,
बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं।
है कौन विघ्न ऐसा जग में,
टिक सके आदमी के मग में?
ख़म ठोंक ठेलता है जब नर
पर्वत के जाते पाँव उखड़,
मानव जब जोर लगाता है,
पत्थर पानी बन जाता है।
गुन बड़े एक से एक प्रखर,
हैं छिपे मानवों के भीतर,
मेहँदी में जैसी लाली हो,
वर्तिका – बीच उजियाली हो,
बत्ती जो नहीं जलाता है,
रोशनी नहीं वह पाता है।
जीने का दम रखता हूँ, तो इस के लिए मरकर भी दिखलाऊंगा ।।
नज़र उठा के देखना, ऐ दुश्मन मेरे देश को
मरूँगा मैं जरूर पर… तुझे मार कर हीं मरूँगा ।।
कसम मुझे इस माटी की, कुछ ऐसा मैं कर जाऊंगा
हाँ मैं इस देश का वासी हूँ, इस माटी का क़र्ज़ चुकाऊंगा ।।
आशिक़ तुझे मिले होंगे बहुत, पर मैं ऐसा कहलाऊंगा
सनम होगा मेरा वतन और मैं दीवाना कहलाऊंगा ।।
माया में फंसकर तो मरता हीं है हर कोई
पर तिरंगे को कफ़न बना कर मैं शहीद कहलाऊंगा ।।
हाँ इस देश का वासी हूँ, इस माटी का क़र्ज़ चुकाऊंगा ।
मेरे हौसले न तोड़ पाओगे तुम, क्योंकि मेरी शहादत हीं अब मेरा धर्म है ।।
सीमा पर डटकर खड़ा हूँ, क्योंकि ये मेरा वतन है
ऐ मेरे देश के नौजवानों अब आंसू न बहाओ तुम ।।
सेनानियों की शाहदत का अब कर्ज चुकाओ तुम
हासिल करो विश्वास तुम, करो देश के दर्द का एहसास तुम ।।
सपना हो हिन्द का सच, दुश्मनों का करो विनाश तुम
उठो तुम भी और मेरे साथ कहो, कुछ ऐसा मैं भी कर जाऊंगा ।।
हाँ इस देश का वासी हूँ, इस माटी का क़र्ज़ चुकाऊंगा
ऐ देश के दुश्मनों ठहर जाओ…. संभल जाओ ।।
मैं इस देश का वासी हूँ, अब चुप नहीं रह जाऊंगा
आंच आई मेरे देश पर तो खून मैं बहा दूंगा ।।
क्योंकि अब बहुत हुआ, अब मैं चुप नहीं रह जाऊंगा
हाँ इस देश का वासी हूँ, इस माटी का क़र्ज़ चुकाऊंगा ।।
खून खौलता है मेरा, जब वतन पर कोई आंच आती है
कतरा कतरा बहा दूंगा, फिर दिल से आवाज आती है ।।
इस माटी का बेटा हूँ मैं, इस माटी में ही मिल जाऊंगा
आँख उठा के देखे कोई, सबको मार गिराऊंगा ।।
भारत का मैं वासी हूँ, अब चुप नहीं रह पाउँगा
अब चुप नहीं रह पाउँगा, अब चुप नहीं रह पाउँगा ।।
2......सलिल कण हूँ, या पारावार हूँ मैं
स्वयं छाया, स्वयं आधार हूँ मैं
सच है, विपत्ति जब आती है,
कायर को ही दहलाती है,
सूरमा नहीं विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते,
विघ्नों को गले लगाते हैं,
काँटों में राह बनाते हैं।
मुँह से न कभी उफ़ कहते हैं,
संकट का चरण न गहते हैं,
जो आ पड़ता सब सहते हैं,
उद्योग – निरत नित रहते हैं,
शूलों का मूल नसाते हैं,
बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं।
है कौन विघ्न ऐसा जग में,
टिक सके आदमी के मग में?
ख़म ठोंक ठेलता है जब नर
पर्वत के जाते पाँव उखड़,
मानव जब जोर लगाता है,
पत्थर पानी बन जाता है।
गुन बड़े एक से एक प्रखर,
हैं छिपे मानवों के भीतर,
मेहँदी में जैसी लाली हो,
वर्तिका – बीच उजियाली हो,
बत्ती जो नहीं जलाता है,
रोशनी नहीं वह पाता है।
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अपना डर जीत ले
घनी अँधेरी रात हो, और तेरे ना कोई साथ हो
मुमकिन है कि तु डर भी जाय, जब अपना साया तुझे डराए
एक पल के लिए तु कुछ सोच ले, पीछे मुड के भी देख ले
अपना डर जीत ले, अपना डर जीत ले
जब बात कुछ नया करने की हो, नए क्षेत्र में मुकाम हासिल करने की हो
समस्या का समाधान ढूंढने की हो, या कौशल नया सीखने की हो
मुमकिन है कि तेरे पैर थम जाय, अनिश्चितता के बादल तुझे डराए
शुरुआत से पहले अभ्यास कर ले , अज्ञानता अपनी थोड़ी दूर कर ले
अपना डर जीत ले, आपना डर जीत ले
पढ़ाई प्राथमिक शाला या उच्च विद्यालय में हो, या फिर महाविद्यालय में हो
घड़ी परीक्षा की जब आ जाय, व्याकुल मन जब तुझे सताए
परिणाम की चिंता भुला दे, ध्यान सिर्फ पढ़ाई पर लगा दे
पढ़कर बुद्धि के भीत ले, अपनी जीत की पक्की तस्वीर खींच ले
अपना डर जीत ले, अपना डर जीत ले
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