History, asked by ranikore1981, 4 months ago

20 points about Golconda in hindi​

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Answered by Hero1234qw
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आधा किलोमीटर तक सुनाई देती है यहां ताली की आवाज, ऐसा है किले का 'अलर्ट' सिस्टम

3 वर्ष पहले

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भोपाल. कभी कोहिनूर हीरे के लिए फेमस रहा हैदराबाद का गोलकोंडा किला एक और खासियत के लिए भी जाना जाता है। इस किले में प्रवेश करते ही एक जगह ऐसी आती है जहां पर ताली बजाने पर इसकी आवाज 400 मीटर दूर बने महल में सुनी जा सकती है। इसलिए बना ये अलर्ट सिस्टम...

-ये जगह प्रवेश द्वार पर ही बनी हुई है। किले में प्रवेश करते ही एक गुंबज बना है जिसका शेप डायमंड के आकार का है।

-इस गुंबज के नीचे खड़े होकर जब ताली बजाई जाती है तो इसकी इको साउंड सुनाई देता है। ये साउंड 400 मीटर दूर बने महल में सुनाई देता है।

-इस जगह की खास बात है कि 8 फीट के रेडियस में ही ताली की आवाज का इफैक्ट होता है जैसे ही इस रेडियस से बाहर निकलते हैं, वैसे ही ताली का प्रभाव खत्म हो जाता है।

यहां बने हैं गुप्त मार्ग

-बाला हिसार गेट गोलकोंडा का मुख्य प्रवेश द्वार है जो पूर्व दिशा में बना हुआ है।

-गोलकोंडा किला चमत्कारिक ध्वनिक सिस्टम के लिये प्रसिद्ध है। किले का सबसे उपरी भाग 'बाला हिसार' है, जो किले से कई किलोमीटर दूर है।

-कहा जाता है की दरबार हॉल और महल के बीच एक गुप्त मार्ग है। चारमीनार जाने के लिये यही से एक गुप्त द्वार भी है।

-किले के प्रवेश द्वार के सामने ही बड़ी दीवार बनी हुई है. यह दीवार राज्य को सैनिकों और हाथियों के आक्रमण से बचाती है।

ताली मारने पर कई सौ मीटर सुनी जाती है आवाज

-किले के प्रवेश द्वार पर बजायी गयी ताली को आसानी से किले के बाला हिसार रंगमंच में सुन सकते हो, जो किले का सबसे उपरी भाग है।

-यह दो चीजों को बताता है। या तो घुसपैठिया अन्दर आ गया, या फिर कोई आपातकालीन स्थिति आ गयी।

-इसका उपयोग इसलिये भी किया जाता था ताकि शाही परिवार के लोगो को आने वाले मेहमानों के बारे में पता चल सके।

रहस्यमयी सुरंग और बाहर जाने का रास्ता

-ऐसा कहा जाता है की इस किले में एक रहस्यमयी सुरंग है जो दरबार हॉल से शुरू होती है और किले के सबसे निचले भाग से होकर बाहर को तरफ ले जाती है।

-असल में इस सुरंग को आपातकालीन समय में शाही परिवार के लोग बाहर जाने के लिये उपयोग करते थे लेकिन इस सुरंग को वर्तमान में कभी देखा नही गया।

ऐसा है किले का इतिहास

-इस किले का निर्माण वारंगल के राजा ने 14 वीं सदी में कराया था। बाद में यह बहमनी राजाओं के हाथ में चला गया और मुहम्मद नगर कहलाने लगा।

-काकतीय के प्रताप रूद्र ने उसकी मरम्मत करवाई थी लेकिन बाद में किले पर मुसुनुरी नायक ने कब्जा कर लिया। उन्होंने तुगलकी सेना को वारंगल में हराया था।

-1512 ईसवी में यह कुतुबशाही राजाओं के अधिकार में आया और वर्तमान हैदराबाद के शिलान्यास के समय तक उनकी राजधानी रहा। फिर 1687 ईसवी में इसे औरंगजेब ने जीत लिया।

-इस शहर और किले का निर्माण ग्रेनाइट हिल से 120 मीटर (480 फीट) की ऊंचाई पर बना हुआ है और विशाल चहारदीवारी से घिरा हुआ है।

-यह ग्रेनाइट की एक पहाड़ी पर बना है जिसमे कुल आठ दरवाजे है और पत्थर की तीन मील लंबी मजबूत दीवार से घिरा है।

-यहां के महलों तथा मस्जिदों के खंडहर अपने प्राचीन गौरव गरिमा की कहानी सुनाते है, मूसी नदी दुर्ग के दक्षिण में बहती है।

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