21. समाजशास्त्र में सहज सामान्य बोध क्या है?
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अतः हमारा 'बिना सीखा गया' ज्ञान या सहज सामान्य बोध अक्सर हमें सामाजिक वास्तविकता का केवल एक हिस्सा ही दिखलाता है। इसके अतिरिक्त यह सामान्यतः हमारे अपने सामाजिक समूह के हितों एवं मतों की तरफ झुका हुआ होता है। अलग-अलग नज़रियों को आमने-सामने करना। दूसरे शब्दों में कहें तो समाजशास्त्र की स्वाभाविक मुद्रा तुलनात्मक होती है।
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