22. जयशंकर प्रसाद किस वाद के कवि थे?
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➲ जयशंकर प्रसाद छायावाद के कवि थे।
व्याख्या :
✎... जयशंकर प्रसाद हिंदी साहित्य जगत के मूर्धन्य साहित्यकार थे। वह छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक स्तंभ माने जाते हैं। वे हिंदी के कवि, कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार तथा निबंधकार रहे हैं। उनकी रचनाएं अद्वितीय थीं। खड़ी बोली में उनकी रचनाओं का कोई मोल नहीं। हिंदी साहित्य में उनकी कृतियों को अद्भुत गौरव प्राप्त है।
जयशंकर प्रसाद का जन्म 3 जनवरी 1889 को काशी में हुआ था। उनके पिता जी साहू सुंघनी के नाम से प्रसिद्ध व्यापारी थे। लेकिन बचपन में ही माता पिता का साया उठ गया और उनके बड़े भाई ने उनका पालन पोषण किया।
जयशंकर प्रसाद में हिंदी में अनेक कविताएं, कहानी, नाटक, उपन्यास और आलोचनात्मक निबंध की रचनाएं हैं। उनकी प्रमुख काव्य रचनाओं में कानन कुसुम, आशु, कामायनी, प्रेम-पथिक, महाराणा का महत्व आदि नाम प्रसिद्ध है। कामायनी उनकी बेहद प्रसिद्ध काव्य रचना है।
प्रसाद जी के कहानी संग्रह में छाया, आकाशदीप, आंधी, प्रतिध्वनि, इंद्रजाल के नाम प्रमुख है।
जयशंकर प्रसाद ने तीन उपन्यास इसमें उनके नाम इरावती, कंकाल और तितली हैं।
जयशंकर प्रसाद ने कुल 13 नाटकों की रचना की, जिनमें आठ नाटक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित थे। तीन नाटक पौराणिक पृष्ठभूमि पर आधारित थे तो दो नाटक भावनात्मक थे। उनके प्रसिद्ध नाटकों में जनमेजय का नागयज्ञ, राज्यश्री, एक घूंट, कामना, स्कन्दगुप्त, चंद्रगुप्त आदि के नाम प्रमुख है। जयशंकर प्रसाद जी ने अनेक आलोचनात्मक निबंधों की भी रचना की थी। मात्र 48 वर्ष की अल्पाआयु में उन्होने इस जगत को अलविदा कह दिया।
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