CBSE BOARD XII, asked by niharikashah3733, 4 months ago

27 अप्रैल 1978 को अफगानिस्तान में क्रांति हुई थी उसका नाम बताइए​

Answers

Answered by harshitk30
0

Explanation:

शुक्रवार, 09 सितंबर, 2005 को 12:06 GMT तक के समाचार

मित्र को भेजें कहानी छापें

अफ़ग़ानिस्तान का संघर्ष भरा इतिहास-1

अफ़ग़ान ल्ड़ाके

अफ़ग़ानिस्तान में मिलिशिया सक्रिय रहे हैं

अफ़ग़ानिस्तान का हाल का जो संघर्ष भरा इतिहास रहा है उसकी शुरूआत 1973 में तब हुई थी जब वहाँ के राजा ज़ाहिर शाह को गद्दी से हटा दिया गया था.

ज़ाहिर शाह अपनी आँख़ का इलाज कराने के लिए इटली गए हुए थे और उनके चचेरे भाई मोहम्मद दाऊद ने ही उनके पीछे ही बग़ावत करके राजमहल पर क़ब्जा कर लिया.

अफ़ग़ानिस्तान का संघर्ष भरा इतिहास-2

मोहम्मद दाऊद ने अफ़ग़ानिस्तान को एक गणराज्य घोषित करते हुए ख़ुद को राष्ट्रपति बना दिया.

मोहम्मद दाऊद ने अपना सत्ता केंद्र स्थापित करने के लिए वामपंथियों पर भरोसा किया और उभरते हुए इस्लामी आंदोलन को दबा दिया.

निर्णायक घड़ी

लेकिन मोहम्मद दाऊद ने अपनी सत्ता के आख़िरी दिनों तक आते-आते अपने वामपंथी समर्थकों को सत्ता के पदों से हटाना शुरू कर दिया और अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत संघ के प्रभाव को भी कम करने की कोशिश की.

बस यहीं से अफ़ग़ानिस्तान के हाल के इतिहास में एक महत्वपूर्ण दौर की शुरूआत हुई यानी 1978 में कम्यूनिस्ट विद्रोह हुआ जिसे देश के अप्रैल क्रांति के नाम से जाना जाता है.

राष्ट्रपति मोहम्मद दाऊद और उनके परिवार की हत्या कर दी गई और नूर मोहम्मद तराकी ने देश की पहली मार्क्सवादी सरकार के मुखिया के तौर पर ज़िम्मेदारी संभाली.

ज़ाहिर शाह

ज़ाहिर शाह के ख़ानदान ने दशकों तक राज किया

बस इसके साथ ही क़रीब 200 साल से चला आ रहा वह दौर समाप्त हो गया जिसमें ज़ाहिर शाह और मोहम्मद दाऊद का परिवार बिना किसी रूकावट के सत्ता चलाता आ रहा था.

लेकिन इसके साथ ही अफ़ग़ानिस्तान की कम्युनिस्ट पार्टी - पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ़ अफ़ग़ानिस्तान यानी पीडीपीए का विभाजन हो गया और गई गुट उभरने लगे.

कठोर नेता

उस वक़्त प्रधानमंत्री बने हफ़ीज़ुल्ला ख़ान राष्ट्रपति नूर मोहम्मद तराकी के विरोधी बन गए थे और अक्तूबर 1979 में गुप्त रूप से तराकी की हत्या कर दी गई. उसके बाद अमीन नए राष्ट्रपति बन गए.

अमीन अपने स्वतंत्र और राष्ट्रवादी इरादों के लिए जाने जाते थे लेकिन वह भी एक कठोर नेता थे.

उन पर हज़ारों अफ़ग़ान लोगों की हत्या कराने के आरोप लगे थे.

दूसरी तरफ़ सोवियत संघ की सरकार उन्हें एक ऐसे शासक के रूप में देखती थी जो मध्य एशिया से मिलने वाले अफ़ग़ानिस्तान में एक आज्ञाकारी कम्युनिस्ट सरकार बनने की संभावनाओं के लिए ख़तरा था.

दिसंबर 1979 में हुए नाटकीय घटनाक्रम में अमीन की हत्या कर दी गई और सोवियत संघ की लाल सेना अफ़ग़ानिस्तान में दाख़िल हो गई.

बबराक करमाल को राष्ट्रपति का पद संभालने के लिए चेकोस्लोवाकिया से वापिस बुलाया गया, वह वहाँ अफ़ग़ान राजदूत थे. उन्हें सोवियत संघ के इशारों पर चलने वाले कठपुतली शासक के रूप में देखा गया.

लाखों मारे गए

अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत संघ का हस्तक्षेप 1989 तक चला और इस दौर को देश के लिए बहुत ख़राब दौर कहा जाता है.

सोवियत संघ ने अपनी कठपुतली सरकार का नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश की जिसमें लाख़ों अफ़ग़ान लोगों को जान गँवानी पड़ी. लाखों अन्य देश छोड़कर ही भाग गए.

अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत सेनाएँ

सोवियत संघ की लाल सेना 1989 में चली गई थी

सोवियत प्रभाव के विरोधी लड़ाकों (मुजाहिदीन) ने लाल सेना को देश से बाहर निकालने के लिए भारी लड़ाई की और इसमें उन्हें अमरीका का गुप्त और भरपूर सहयोग मिला.

क़रीब दस साल के संघर्ष के बाद मई 1989 में सोवियत संघ ने आख़िरकार अफ़ग़ानिस्तान से अपनी सेनाएँ हटा लीं और सत्ता राष्ट्रपति नजीबुल्ला के हाथों में सौंप दी. नजीबुल्ला बबराक करमाल के बाद राष्ट्रपति बने थे.

नजीबुल्ला सोवियत सेनाओं के हटने के बाद क़रीब तीन साल यानी 1992 तक सत्ता में रहे और संयुक्त राष्ट्र उस समय सत्ता के शांतिपूर्ण स्थानांतरण की कोशिश कर रहा था.

Similar questions