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2.
क्या सार्वजनिक ऋण बोझ बनता है? व्याख्या कीजिए।
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Answer:
हाँ सार्वजनिक ऋण , बोझ बन जाता है।
Explanation:
- आवर्ती उधार भविष्य की पीढ़ियों के लिए राष्ट्रीय ऋण जमा करता है।
- भावी पीढ़ी को एक पिछड़ी अर्थव्यवस्था विरासत में मिलती है, जिसमें राष्ट्रीय सकल उत्पाद की वृद्धि कम रहती है।
- नतीजतन, सकल घरेलू उत्पाद का एक बड़ा हिस्सा ऋण या ब्याज भुगतान की अदायगी के लिए खर्च किया जाता है, और घरेलू निवेश निम्न स्तर पर रहता है। जब सकल घरेलू उत्पाद का एक बड़ा हिस्सा राजकोषीय घाटा होता है,
- तो ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है जहां उच्च राजकोषीय घाटे का परिणाम निम्न जीडीपी विकास दर में होता है और कम सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि से राजकोषीय घाटा होता है। उच्च है। इसलिए, प्राप्ति अनुबंध जबकि व्यय का विस्तार होता है।
- इससे राजकोषीय घाटा बढ़ता है। बढ़ते राजकोषीय घाटे के साथ, सरकारी व्यय का एक बड़ा हिस्सा कल्याणकारी व्यय पर खर्च किया जाता है।
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सार्वजनिक ऋण
Explanation:
वैसे तो सामान्यतः सार्वजनिक ऋण सिर पर बोझ नहीं बनता लेकिन जब कभी सार्वजनिक ऋण ऐसे उद्देश्य के लिए लिया जाता है जहां पर धन की बढ़ोतरी नहीं बल्कि कमी होती है जैसे कि बिजनेस ऐसे 1 बिजनेस के लिए लिया जाता है जिससे बिजनेस डूब जाता है। ऐसी स्थिति में सार्वजनिक ऋण काफी नुकसानदेह हो सकता है और काफी ऐसी स्थितियां होती है जहां पर बिजनेस में पैसे लगाए जाते हैं तो वह काफी फायदेमंद होते हैं क्योंकि जो रन हम वो लिए रहते हैं, उन पैसों को इकट्ठा ही बिजनेस में लगाते हैं और वह बिजनेस द्वारा मिलने वाले पैसों को धीरे धीरे के रूप में चुका देते हैं।
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