3. 'बूंद लौं कुछ और ही देता है कर' पंक्ति का क्या अर्थ है ?
Answers
Explanation:
स्कूल में कविवर अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ की एक कविता पढ़ी थी - ‘एक बूंद’। बहुत सरल शब्दों में लिखी एक सशक्त कविता है जिसके सारगर्भित दर्शन से मैं बहुत बाद में परिचित हुआ, जबकि परीक्षा में उत्तर लिखने योग्य भावार्थ, भाषा, शैली आदि की जानकारी तो स्कूल में ही मिल गई थी। ब्लॉग की इस कड़ी का शीर्षक उसी कविता की अंतिम पंक्ति है - क्यों है, यह मैं बाद में बताऊंगा। फ़िलहाल मैं पूरी कविता उद्धृत करने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूँ। प्रस्तुत है वह कालजयी कविता -
ज्यों निकल कर बादलों की गोद से,
थी अभी इक बूँद कुछ आगे बढ़ी।
सोचने फिर-फिर यही जी में लगी
आह! क्यों घर छोड़ कर मैं यों कढ़ी?
देव मेरे भाग्य में कया है बदा,
मैं बचूँगी या मिलूँगी धूल में?
या जलूँगी गिर अंगारे पर किसी,
चू पड़ूँगी या कमल के फूल में?
बह गई उस काल इक ऐसी हवा,
वह समुंदर ओर आई अनमनी।
एक सुंदर सीप का मुँह था खुला,
वह उसी में जा पड़ी मोती बनी।
लोग यों ही हैं झिझकते, सोचते,
जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घर।
किंतु घर का छोड़ना अक्सर उन्हें
बूँद लौं कुछ और ही देता है कर।
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Answer:
बूंद तुच्छता की क्या पहचान बताती है ?