(3) जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं।
प्रेम गली अति साँकरी, तामे दो न समाहि।
सात समंद की मसि करौं, लेखनि सब बनराय।
सब धरती कागद करौं, हरि गुन लिखा न जाय॥
(क) 'मैं' शब्द से क्या तात्पर्य है? 'मैं' का नाश होने पर क्या सुखद परिणाम होता है?
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Explanation:
कबीरदास जी कहते हैं कि जहां घमंड होता है । अहंकार होता है वहां भगवान का वास नहीं होता है। जहां भगवान विराजते हैं वहां हम नहीं हो सकता। क्योंकि प्रेम की गली अत्यधिक तंग है ।उसमें अहंकार और ईश्वर का एक साथ नहीं रह सकते । अहंकार मनुष्य के लिए अभिशाप है ।अहंकारी व्यक्ति कभी भगवान को नहीं पा सकता। भगवान का अर्थ है प्रेम! और जहां सच्चा प्यार होगा वहां अहंकार नहीं हो सकता। प्रेम की गली में या तो भगवान रहेंगे या फिर अहंकार। अंहकारी व्यक्ति कभी भगवान के प्रेम को समझ नहीं सकता है।
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