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क्या सार्वजनिक ऋण बोझ बनता है? व्याख्या कीजिए।
Does public debt impose a burden? Explain.
Answers
Answer:
kya sarwjanic rin boojh banta hai vyakhya kijiye
क्या सार्वजनिक ऋण बोझ बनता है? व्याख्या कीजिए।
हाँ, सार्वजनिक ऋण बोझ बनता है, हम इस कथन से सहमत हैं।
व्याख्या :
सार्वजनिक ऋण के कारण भावी पीढ़ी के लिए एक पिछड़ी हुई अर्थव्यवस्था मिलती है। किसी भी तरह का आवर्ती ऋण आने वाली पीढ़ी के लिए संचित ऋण प्रदान करता है, जिससे उस पर उस ऋण को चुकाने का दायित्व और दबाव बनता है। इससे अर्थव्यवस्था पिछड़ती है और राष्ट्रीय सकल उत्पादन की वृद्धि भी कम होती है।
राष्ट्रीय सकल उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा ऋणों के भुगतान या उसके ब्याज के भुगतान में ही लग जाता है, इससे घरेलू विकास की दर प्रभावित होती है। सकल राष्ट्रीय उत्पाद का एक बड़ा हिस्सा राजकोषीय घाटा होने पर ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है। जब ऋण लेने के कुचक्र फंसना पड़ता है और इस तरह का सार्वजनिक देश की अर्थव्यवस्था पर बोझ का ही कार्य करता है। सकल राष्ट्रीय उत्पाद का एक बड़ा हिस्सा उसके भुगतान में ही चला जाता है, जिससे राजकोषीय घाटा निरंतर बढ़ता रहता है। इसलिए सार्वजनिक ऋण हमेशा बोझ ही बनता है।