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मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरें पहिरौंगी।
ओढ़ि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी।।
भावतो वोहि मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वाँग करौंगी।
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।।
This is the question of hindi class 9 book sitiz vyakha
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तीसरे छंद में कृष्ण के रूप-सौन्दर्य के प्रति गोपियों के अनुराग को कवि ने अभिव्यक्त किया है।एक गोपी किसी अन्य गोपी से कहती है कि तुम्हारे कहने से मैं मोरपंख सिर के ऊपर रखूँगी,गुंज की माला गले में धारण कर लूँगी, पीतांबर ओढ़ कर और लाठी लेकर गायों और ग्वाल-बालों के साथ वन-वन घूमुंगी ।रसखान कहते हैं कि वह गोपी कहती है,कि वह सारे स्वांग करेगी लेकिन उस मुरली धारण करने वाले की मुरली कभी भी अपने होंठों पर नहीं रखेंगी ।( वह गोपी कृष्ण जी के हमेशा समीप रहने वाली मुरली से सौतिया डाह रखती है।)अंतिम पंक्ति में यमक अलंकार है ।
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