Geography, asked by sahjeenal4396, 1 year ago

3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए : (i) जल धाराएँ तापमान को कैसे प्रभावित करती हैं? उत्तर पश्चिम यूरोप के तटीय क्षेत्रों के तापमान को ये किस प्रकार प्रभावित करते हैं? (ii) जल धाराएँ कैसे उत्पन्न होती हैं?

Answers

Answered by shishir303
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(i)

जल धाराएं किस प्रदेश की जलवायु एवं तापमान को बहुत प्रभावित करती हैं। किसी क्षेत्र की जलवायु जैसी होगी उस जलवायु का प्रभाव भी उस क्षेत्र पर भी पड़ता है। जल धाराएं अधिक तापमान वाले क्षेत्रों से कम तापमान वाले क्षेत्रों की ओर तथा उसके विपरीत कम तापमान वाले क्षेत्रों से अधिक तापमान वाले क्षेत्र की ओर प्रभाहित होती हैं। जिल दिशा में गर्म जल धाराएं बहती हैं उस क्षेत्र का तापमान गर्म हो जाता है और ठंडी जलधाराएं क्षेत्र के तापमान को कम कर देती हैं। किसी भी जलधारा के तापमान का असर उसके ऊपर बहने वाली हवा पर भी पड़ता है इसी कारण विषुवतीय क्षेत्रों से उच्च अक्षांश वाले ठंडी जगहों की ओर बहने वाली जलधाराएं उस क्षेत्र के तापमान को बढ़ा देती हैं उदाहरण के लिए गर्म उत्तरी अटलांटिक हवाएं जो उत्तर की ओर यूरोप के पश्चिमी तट की ओर बहती हैं। यह ब्रिटेन और नार्वे में शीत ऋतु में भी बर्फ को जमने नहीं देतीं।

(ii)

जल धाराओं की उत्पत्ति के निम्नलिखित कारण हैं।

तापमान की भिन्नता — सागर के जल के तापमान में क्षैतिज और लंबवत धारायें पाई जाती हैं। कम तापमान होने पर जल ठंडा होकर नीचे बैठ जाता है और विषुवतीय रेखा से ध्रुवों की ओर बहने लगता है। उत्तरी एवं दक्षिणी विषुवतीय जलधारायें इसी प्रकार की हैं।

प्रचलित पवन — धाराओं को उत्पन्न करने में पवन का बहुत बड़ा योगदान होता है। प्रचलित  पवन सदा हमेशा एक ही दिशा में चलती हैं। ये सागर के ऊपरी तल से गुजरते समय जल को अपनी घर्षण शक्ति से आगे की ओर खेलती हैं और धारा को जन्म देती हैं।

लवणता में भिन्नता — जिस जल में अधिक लवण होता है वो जल भारी हो जाता है और नीचे बैठ जाता है। इस कारण उसका स्थान लेने के लिए कम लवण वाला जल ऊपर आ जाता है और इस प्रकार एक धारा की उत्पत्ति होती है। हिंद महासागर के जल को लाल सागर की ओर प्रवाह इसका एक उदाहरण है।

वाष्पीकरण और वर्षा — जिन स्थानों पर वाष्पीकरण अधिक होता है वहां सागर का तल नीचा हो जाता है और इस कारण उच्च तल के क्षेत्रों से सागर का जल निचले तल के क्षेत्रों की ओर प्रवाहित होने लगता है। इस कारण जल धाराओं की उत्पत्ति होती है। इसके अतिरिक्त अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में सागरीय जल में वृद्धि हो जाती है और ऐसे क्षेत्रों से जल निम्न वर्षा वाले क्षेत्रों की ओर एक धारा के रूप में प्रवाहित होने लगता है।

ऋतु परिवर्तन — उत्तरी हिंद महासागर में समुद्री धाराओं की दिशा ऋतु परिवर्तन के साथ बदलती जाती है। शीत ऋतु में मानसून की दिशा पूरब से पश्चिम तथा गर्मियों की ऋतु में पश्चिम से पूर्व की ओर होती जाती है। हिंद महासागर में भी भूमध्य रेखीय विपरीत धारा केवल शीत ऋतु में ही होती है और भूमध्य रेखीय धारा केवल ग्रीष्म ऋतु में ही रहती है।

तट रेखा की आकृति — तटरेखा की आकृति का भी महासागर की धाराओं के प्रवाह की दिशा को निर्धारित करता है। उत्तरी हिंद महासागर में पैदा होने वाली धाराएं भारतीय प्रायद्वीप की रेखा का अनुसरण करती हैं।

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