3. प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन किन रूपों में किया है।
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प्रस्तुत कविता ‘अट नहीं रही है’ में कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जी ने फागुन के सर्वव्यापक सौन्दर्य और मादक रूप के प्रभाव को दर्शाया है। फागुन के सौंदर्य को असीम दिखाया है। उसे हर जगह छलकता हुआ दिखाया है। घर-घर में फैला हुआ दिखाया है। यहाँ ‘घर-घर भर देते हो’ में फूलों की शोभा की और संकेत है और मन में उठी खुशी की और भी। उड़ने को पर पर करना भी ऐसा सांकेतिक प्रयोग है। यह पक्षियों की उड़ान पर भी लागू होता है और मन की उमंग पर भी। सौंदर्य से आँख न हटा पाना भी उसके विस्तार की झलक देता है।
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प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन मन के उल्लास के रुप में किया है। मन में अगर उल्लास भरा होता है तो हमें अपने आस-पास की दुनिया अत्यंत सुंदर लगती है। Q. कवि की आँख फागुन की सुंदरता से क्यों नहीं हट रही है?
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