3-सुबह के दृश्य का चित्र बनाइए और उस पर कविता लिखिए ।
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हम पड़े रहते है नींद की चादर के निचे सुविओं को तहकिये और बहार सुबह की धुप हमारा इंतज़ार करती है खिड़की रोशनदानों पर दस्तक देती हुई सब कुछ जानते समझते हुए भी हम बेखबर रहते है सुबह की इस धुप से जो हर सुराख़ से पहुँच रही अपनी चमकीली किरणो के साथ अंधकार को भेदती हुई यह उतरती है।
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- कहो, तुम रूपसि कौन?
- व्योम से उतर रही चुपचाप
- छिपी निज छाया-छबि में आप,
- सुनहला फैला केश-कलाप,
- मधुर, मंथर, मृदु, मौन!
- मूँद अधरों में मधुपालाप,
- पलक में निमिष, पदों में चाप,
- भाव-संकुल, बंकिम, भ्रू-चाप,
- मौन, केवल तुम मौन!
- ग्रीव तिर्यक, चम्पक-द्युति गात,
- नयन मुकुलित, नत मुख-जलजात,
- देह छबि-छाया में दिन-रात,
- कहाँ रहती तुम कौन?
- अनिल पुलकित स्वर्णांचल लोल,
- मधुर नूपुर-ध्वनि खग-कुल-रोल,
- सीप-से जलदों के पर खोल,
- उड़ रही नभ में मौन!
- लाज से अरुण-अरुण सुकपोल,
- मदिर अधरों की सुरा अमोल,--
- बने पावस-घन स्वर्ण-हिंदोल,
- कहो, एकाकिनि, कौन?
- मधुर, मंथर तुम मौन
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