Hindi, asked by jatinmakhija9303, 7 months ago


3. संभ्रात महिला के दुःख और बुढ़िया के दुःख में क्या अंतर था ?​

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Answered by Anonymous
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Answer:

बुढ़िया के दुख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद इसलिए आई कि उस संभ्रांत महिला के पुत्र की मृत्यु पिछले साल ही हुई थी। पुत्र के शोक में वह महिला ढाई महीने बिस्तर से उठ नहीं पाई थी। उसकी तीमारदारी में डॉक्टर और नौकर लगे रहते थे। शहर भर के लोगों में उस महिला के शोक मनाने की चर्चा थी।

Explanation:

बुढ़िया के दुख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद आई क्योंकि उसके साथ भी ठीक ऐसी ही घटना घटी थी। वह अपने जवान बेटे की मृत्यु के कारण अढ़ाई मास तक पलंग से न उठ सकी थी। पंद्रह-पंद्रह मिनट पर मूर्छित हो जाती थी। शहर भर के लोगों के हृदय उसके पुत्र के शोक को देखकर द्रवित हो उठे थे।

उसकी अवस्था में सुधार लाने के लिए डॉक्टरों का भी प्रबंध किया गया था। दूसरी तरफ यहाँ लोग बुढ़िया पर ताने कस रहे थे। उसपर तरह-तरह के आरोप लगा रहे थे। ऐसा दृश्य देखकर लेखक को लगा कि दुख मनाने का भी अधिकार होता है। दुख मनाने के लिए भी पर्याप्त पैसे और समय होना चाहिए।

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