History, asked by ojasvipathak11, 1 year ago

30. कृष्ण ने विश्वरूप क्यों दिखाया ? (गीता 11.54)
क. जब कोई व्यक्ति स्वयं को भगवान के
ख.अर्जुन के प्रार्थना करने पर
अवतार के रूप में प्रस्तुत करता हैं तो लोग ग.ऊपर दिये दोनों विकल्प
उसे अपना विश्वरूप प्रकट करने के लिए कह घ.इनमें से कोई विकल्प नहीं
सकें​

Answers

Answered by UmangThakar
4

उत्तर :     सही उत्तर है (ख) अर्जुन के प्रार्थना करने पर

श्रीकृष्ण ने खुद को समस्त ब्रम्हांड को अपने एक अंश से धारण किया हुआ बताकर उस अध्याय को समाप्त कर दिया। इस पर अर्जुन के मन में कृष्ण के उस विराट स्वरूप को देखने की इच्छा जागृत हुई। श्रीकृष्ण ने अर्जुन की इस इच्छा को भी शांत करने का निर्णय लिया और उन्हें अपने विश्वरूप का दर्शन कराया। श्रीकृष्ण के इस विराट स्वरूप का तेज बहुत ही ज्यादा था। यह तेज अर्जुन से सहन भी नहीं हो रहा था। अर्जुन पूरी तरह से कृष्ण की भक्ति में डूब गए थे और उनकी आंखों से आंसू निकल रहे थे।

इस विराट स्वरूप में समस्त ब्रम्हांड को समाहित देखकर अर्जुन मोह से मुक्त हो गए। इसके बाद अर्जुन ने युद्ध के विरक्ति भाव से मुक्त होकर महाभारत युद्ध का सफलता पूर्वक संचालन किया। अर्जुन की यह निष्ठा युद्ध में कौरवों पर विजय के रूप में फलदायी हुई। श्रीकृष्ण के इस विराट स्वरूप का दर्शन अर्जुन के अलावा तीन अन्य लोगों ने भी किया था। ये हैं- हनुमान, महर्षि व्यास के शिष्य तथा धृतराष्ट्र की राजसभा के सदस्य संजय और बर्बरीक।

Answered by shishir303
4

सही उत्तर है, विकल्प....

(ख) अर्जुन के प्रार्थना करने पर।

स्पष्टीकरण :

महाभारत में अर्जुन के प्रार्थना करने पर अर्जुन को अपना विश्वरूप दिखाया ताकि अर्जुन की सभी शंकाओं का समाधान हो सके और अपनी अज्ञानता  के अंधकार को दूर करते हुए निष्कंटक भाव से युद्ध के कार्य में प्रवृत्त हो सके।

श्रीमद्भागवतगीता के 11 अध्याय के श्लोक 54 में कृष्ण अर्जुन को अपना विश्वरूप दिखाते हुये कहते हैं।

भक्त्या त्वनन्यया शक्यमहमेवंविधोऽर्जुन।

ज्ञातुं दृष्टुं च तत्त्वेन प्रवेष्टुं च परंतप।।11.54।।

भावार्थ ► श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन! ध्यान से मेरा रूप देखो। ऐसा शंख, चक्र, गदा, पद्म धारी चतुर्भुजरूप तुमने पहले कभी देखा है क्या? मेरे इस रूप के दर्शन करने के लिए यज्ञ, दान, तप आदि की जरूरत नहीं पड़ती, अर्थात मेरा ये रूप किसी भी यज्ञ, दान, तपस्या आदि के द्वारा प्राप्त फल से भी नहीं देखा जा सकता बल्कि मेरे इस चतुर्भुजधारी रूप के दर्शन करने के लिए अनन्य भक्ति भाव की आवश्यकता होती है। जिसने संसार के सभी मोह, माया, बंधन को त्यागकर मुझ में अपने अनन्य भक्ति प्रकट कर दी है, ऐसे अनन्य भक्त को मैं अपने इस चतुर्भुज रूप का दर्शन कराता हूँ।

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