31. मित्र को पथ-प्रदर्शक के समान माना जाता है। हमारे जीवन को उन्नति तथा अवनति बहुत कुछ मित्र के चुनाव
पर निर्भर करती है। अतः मित्र का चुनाव करते समय हमें विशेष सावधानी से काम लेना चाहिए। ऐसे लोगों का साथ
करना हमारे लिए लाभकारी नहीं जो हम से अधिक दृढ़ संकल्प के हैं। ऐसे मित्र की हर जात हमें माननी पड़ती है। इससे
हमारे चरित्र का स्वतंत्र विकास नहीं हो सकता। ऐसे लोगों का साथ भी उचित नहीं जो हमारी ही बात को ऊपर रखें।
मित्र ऐसा हो जिस पर हम पूरा विश्वास कर सकें। वह भाई के समान सहायक और हमारे प्रति सहानुभूति दिखाने वाला
हो। जो गुण हम में नहीं, वह हमारे मित्र में होने चाहिए। गंभीर प्रकृति वाले मनुष्य को विनोदी पुरुष का संग करना चाहिए
और निर्जल को बलवान का तथा महत्वाकांक्षी व्यक्ति को किसी महान व्यक्ति को मित्रता करनी चाहिए। मित्र ऐसा चुनना
चाहिए जिसके साथ हम अपने गुणों का आदान-प्रदान कर सकें।
(i) मित्र जीवन का क्या होता है?
(ii) मित्र कैसा होना चाहिए?
(iii) लेखक मित्र को किसके समान सहायक मानता है?
(iv) विनोदी व्यक्ति का मित्र कैसी प्रकृति का व्यक्ति होना चाहिए?
(v) इस गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
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एक मित्र होने का अर्थ यह नहीं है कि आप किसी मजाक, बातचीत, एक चाय का कप या एक गुदगुदाती कहानी का हिस्सा बनें। बल्कि इसका मतलब है अपने सच्चे और ईमानदार हिस्से को साझा करना। मित्रता महज एक औपचारिकता नहीं, बल्कि एक बड़ा उत्तरदायित्व है जिसे दोनों पक्षों को स्वेच्छा से ओढना पड़ता है। मित्र का कर्तव्य इस प्रकार बताया गया है : "उच्च और महान कार्य में इस प्रकार सहायता देना, मन बढ़ाना और साहस दिलाना कि तुम अपनी निज की सामर्थ्य से बाहर का काम कर जाओ।"
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