India Languages, asked by danish5447, 9 months ago

31. वाड्मयं तपः कीदृशैः वाक्यं भवति?
अस्मै तपसे किं किं करणीयम्?

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Answered by rupeshrastogi382
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।।17.15।।जो वचन किसी प्राणीके अन्तःकरणमें उद्वेगदुःख उत्पन्न करनेवाले नहीं हैं? तथा जो सत्य? प्रिय और हितकारक हैं अर्थात् इस लोक और परलोकमें सर्वत्र हित करनेवाले हैं? यहाँ उद्वेग न करनेवाले इत्यादि लक्षणोंसे वाक्यको विशेषित किया गया है और च शब्द सब लक्षणोंका समुच्चय बतलानेके लिये है ( अतः समझना चाहिये कि ) दूसरेको किसी बातका बोध करानेके लिये कहे हुए वाक्यमें यदि सत्यता? प्रियता? हितकारिता और अनुद्विग्नता -- इन सबका अथवा इनमेंसे किसी एक? दो या तीनका अभाव हो तो वह वाणीसम्बन्धी तप नहीं है। जैसे सत्य वाक्य यदि अन्य एक? दो या तीन गुणोंसे हीन हो तो वह वाणीका तप नहीं है? वैसे ही प्रिय वचन भी यदि अन्य एक? दो या तीन गुणोंसे हीन हो तो वह वाणीसम्बन्धी तप नहीं है? तथा हितकारक वचन भी यदि अन्य एक? दो या तीन गुणोंसे हीन हो तो वह वाणीका तप नहीं है। पू0 -- तो फिर वह वाणीका तप कौनसा है उ0 -- जो वचन सत्य हो और उद्वेग करनेवाला न हो तथा प्रिय और हितकर भी हो? वह वाणीसम्बन्धी परम तप है। जैसे? हे वत्स तू शान्त हो स्वाध्याय और योगमें स्थित हो? इससे तेरा कल्याण होगा इत्यादि वचन हैं तथा यथाविधि स्वाध्यायका अभ्यास करना भी वाणीसम्बन्धी तप कहा जाता है।

Answered by subhranilroy2007
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