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बिहार में पंचायती राज की उपलब्धियों पर प्रकाश डालें।
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अधिनियम, 1993 बनाया गया।इसमें 73 वें संविधान के सारे प्रावधान शामिल किये गये।इन प्रावधानों के अलावे, इस अधिनियम में नगर कचहरी की अवधारणा को सम्मिलित किया गया।साथी ही आरक्षण में महिलाओं एंव अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के साथ-साथ पिछड़े वर्गों की जातियों के लिए भी जनसंख्या के आधार पर आरक्षण का प्रावधान किया गया।इसके विरोध में माननीय पटना उच्च न्यायालय के समक्ष कई रिट याचिकाएं दायर की गई।इन याचिकाओं का निरस्तारण करते हुए माननीय पटना उच्च न्यायालय की युगल पीठ ने मुख्य रूप से कुल आरक्षण का पचास प्रतिशत से अधिक नहीं करने तथा मुखिया सरपंच, प्रमुख और अध्यक्ष का पद एकल मानकर इसके आरक्षण पर रोक लगा दिया।इसके साथ ही ग्राम कचहरी के प्रावधान को असंवैधानिक बताते हुए संरपंच एंव पंच के लिए शैक्षणिक योग्यता निर्धारित करने और उनके प्रशिक्षण की व्यवस्था कराने पर भी बल दिया।माननीय पटना उच्च न्यायालय के इस आदेश के आलोक में राज्य सरकार ने विवादित बिन्दुओं को छोड़कर राज्य निर्वाचन आयोग से 2001 में पंचायत चुनाव कराने का अनुरोध किया।इस चुनाव में लगभग 1,37,000 पंचायत प्रतिनिधि निर्वाचित हुए।
कार्यरत पंचायत राज का कार्यकाल समाप्त होने के पूर्व 2005 में राज्य की नई सरकार ने
- पंचायत राज को पूर्ण रूप से एवं प्रभावी ढंग से कार्यरत करने
- महिलाओं को सभी स्तरों एवं स्थानों पर 50% आरक्षण देने आधार पर आरक्षण देने और
- अत्यंत पिछड़ा वर्ग को सभी स्थानों एंव सभी स्तरों पर अधिकतम 20% का आरक्षण देकर
इन सस्थाओं को और शक्तिशाली बनाने का निर्णय लिया।कुल आरक्षण 50% से अधिक नहीं रखना नहीं रखना भी तय किया गया।इसी प्रकार पुराने अधिनियम को निरस्त करते हुए बिहार पंचायत राज अध्यादेश 2006 बना, जिसे बिहार पंचायत राज अधिनियम, 2006 के रूप में लागू किया गया।इसमें उपर्युक्त सभी बिन्दुओं के साथ ही ग्रामीण न्याय व्यवस्था, ग्राम कचहरी, के रूप में वर्णित आरक्षण के दायरे में रखकर समाहित किया गया।
बिहार पंचायत राज अधिनियम, 2006 के अंतर्गत पंचायत राज के विभिन्न संस्थानों का स्वरुप कुछ इस प्रकार उभरता है:
ग्राम सभा
ग्राम सभा पंचायत राज की मूल संस्था है।पंचायत राज की अन्य संस्थायें ग्राम पंचायत (ग्राम कचहरी), पंचायत समिति एवं जिला परिषद जनता के प्रतिनिधियों वाली संस्थाएं हैं।परन्तु ग्राम सभ स्वयं जनता के सभा है।
ग्राम सभा का क्षेत्र एक राजस्व ग्राम होता है।इसके सदस्य उस राजस्व ग्राम में रहने वाले सभी मतदाता होते हैं, ग्राम सभा की बैठक में इनके सक्रिय रूप से भाग लेने पर ही पंचायत राज का सबल एवं सफल होना निर्भर करता है।
इनके सक्रिय रूप से भाग लेने पर ही पंचायत राज का सबल एवं सफल होना निर्भर करता है।
ग्राम सभा ग्राम स्तर की तीन मूल संस्थाओं में से एक है।अन्य दो संस्थाएं है, ग्राम कोष एंव ग्राम शांति सेवा।इन दोनों के साथ मिलकर ग्राम सभा गाँव स्तर पर स्वयं जनता द्वारा संचालित जनतांत्रिक इकाई बन जाती है।परन्तु वर्तमान अधिनियम में इसका समावेश नहीं है।
ग्राम सभा हमारे गणतंत्र की की मूल सभा अहि; सदस्यों की श्रेणी एवं संख्या के हिसाव से था सभी सभाओं में सबसे अलग होने के नाते भी।हमारे गणतंत्र में चार सभाएं हैं- लोकसभा, राज्य सभा, विधान सभा एवं ग्राम सभा।इनमें पहले तीन में जनता द्वारा सीधे (प्रत्यक्ष रूप से) या घुमाकर (अप्रत्यक्ष रूप से) चुने गये प्रतिनिधि होते हैं परन्तु ग्राम सभा में स्वयं जनता उपस्थित होती है।इन तीनों की तुलना में ग्राम सभा में सदस्यों की संख्या कई गुणा अधिक होती है।शेष तीनों सभाओं के गठन एवं भंग होने की एक निश्चित अवधि होती है, परन्तु ग्राम सभा की कोई अवधि नहीं।यह के स्थायी सभा है।
ग्राम सभा की बैठक हर तीन माह पर होनी आवश्यक है, परन्तु आसानी से याद रखने के लिए इसे 26 जनवरी; गणतंत्र दिवस, 1 मई श्रमिक दिवस, 15 अगस्त, स्वंतत्रता दिवस, एवं २ अक्टूबर महात्मा गाँधी के जन्मदिन, से जोड़ दिया गया है।
ग्राम सभा की बैठक की सुचना डुगडुगी बजकर और ग्राम पंचायत कार्यालय के सूचनापट्ट पर नोटिस चिपका कर देनी आवश्यक है।
ग्राम सहबा की बैठक बुलाने के जिम्मेवारी मुखिया की है, पर उनके ऐसा न करने पर पंचायत समिति के कार्यपालक पदाधिकारी की हैसियत से बी०डी.ओ. यह जिम्मेवारी निभाएंगे।ग्राम सभा की बैठक मुखिया द्वारा न बुलाने की स्थिति में इसके सदस्यगण अर्थात मतदाता भी बी.डी.ओ. को इस बात की सूचना देकर बैठक बुलवा सकते हैं।
ग्राम सभा की बैठक का कोरम कुल सदस्यों की संख्या के 20वें भाग की उपस्थिति से पूरा हो जाएगा।अगर बैठक कोरम के अभाव में स्थगित हो जाती है तो पुनः बैठक बुलाने पर कुल सदस्यों के 40 वें भाग उपस्थिति से ग्राम सभा का कोरम पूरा जाना है।इसे एक उदाहरण के द्वारा इस प्रकार समझा जा सकता है-
मान लें कि किसी ग्राम पंचायत के कुल मतदाताओं की संख्या 3500 है।उस ग्राम पंचायत के तीन राजस्व गाँव ‘क’ ‘ख’ और ‘ग’ की मतदाता संख्या क्रमशः 1000, 1200 और 1300 है तो उस ग्राम पंचायत की प्रत्येक ग्राम सभा में गणपूर्ति के लिए न्यूनतम आवश्यक संख्या इस प्रकार होगी-