Hindi, asked by ashwanth2305, 1 month ago

4. आशाय स्पष्ट कीजिए: प्रभु जी, तुम घन बनहम मोरा, जैसे चित बतचंद चकोरा |​

Answers

Answered by siwanikumari42
0

Answer:

प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के रैदासबानी’ नामक कविता से लिया गया है, जिसके रचयिता संत रैदास जी हैं। संदर्भ : रैदास जी ने भगवान राम को समर्पण भाव से स्वीकारते हुए स्वयं को दास के रूप में खुद को संबोधित किया है तो प्रभु को चंदन और स्वामी के रूप में स्वीकार किया है। व्याख्या : रैदास जी कहते हैं कि अब उनका मन भगवान राम में लग गया है। वे कहते हैं – प्रभु जी चन्दन के समान है और हम पानी के समान जिसके शरीर पर लगने से अंग अंग सुगंधित हो जाता है। प्रभु जी बादल के समान हैं और भक्त मोर के समान। आसमान में बादल देखते ही मोर नाच उठता है, वैसे ही प्रभु का नाम सुनते ही भक्त बावला हो जाता है। जिस प्रकार चकोर पक्षी चाँद को निहारता है वैसे ही रैदास भी प्रभु को निहारते रहते है। विशेष : भगवान के प्रति दास्यभाव प्रकट किया है। सच्ची भक्ति और एक निष्ठता व्याप्त है। समाज का व्यापक हित, एवं मानव प्रेम को स्थान मिला।

mark as Brainlist

Similar questions