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कहते आते थे यही सभी नर देही
'माता न कुमाता, पुत्र कुपुत्र भले ही।'
अब कहें सभी यह हाय! विरुद्ध विधाता-
'है पुत्र पुत्र ही, रहे कुमाता माता।'
बस मैंने इसका बाह्य मात्र ही देखा
दृढ़ हृदय न देखा, मृदुल गात्र ही देखा।
परमार्थ न देखा, पूर्ण स्वार्थ ही साधा
इस कारण ही तो हाय आज यह बाधा!
युग-युग तक चलती रहे कठोर कहा
'रघुकुल में भी थी एक अभागिन र
निज जन्म-जन्म में सुने जीव यह में
‘धिक्कार! उसे का महा स्वार्थ ने छ
"सौ बार धन्य वह एक लाल की
जिस जननी ने है जना भरत-सा भ
पागल-सी प्रभु के साथ सभा चिल्त
"सौ बार धन्य वह एक लाल की
प्रश्न
(क) कैकयी ने अपने पश्चाताप को किस तरह से प्रकट किया?
(ख) कैकयी के पश्चाताप की प्रतिक्रिया स्वरूप जनता ने क्या कहा?
(ग) निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-
(1) उपर्युक्त काव्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
(ii) संधि-विच्छेद कीजिए परमार्थ स्वार्थ।प्लीज टेल मी द क्वेश्चन ऑफ एस आई मात्रक
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की तरह है कि हम भ्रष्टाचार से पहले से शादीशुदा में है उसकी धड़कन रुकी में है उसकी धड़कन रुकी में है उसकी धड़कन रुकी में है उसकी धड़कन रुकी में है उसकी धड़कन रुकी में है उसकी धड़कन रुकी में है उसकी धड़कन रुकी में है उसकी धड़कन रुकी में है उसकी धड़कन रुकी में है उसकी धड़कन रुकी में भी आग आदत हो ये राह न कोई भी चीज के साथ चले जाते है और उसके बाद वे तुम्हें वापस नही है वरना हरबार के साथ चले जाते है और उसके बाद वे तुम्हें वापस नही है वरना हरबार के साथ चले जाते है और उसके बाद वे तुम्हें वापस नही है वरना हरबार के साथ चले जाते है और उसके बाद वे तुम्हें वापस नही है वरना हरबार के साथ चले जाते है और उसके बाद वे तुम्हें वापस नही है वरना हरबार के साथ चले जाते है और इसका
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reckon kittens ki vyakhya kijiye
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