Sociology, asked by qwerty1ke56, 11 months ago

4. रावण वासना का प्रतीक है और हनुमान सेवा भावना के
प्रतीक हैं। रावण सीता माता का उपभोग करना चाहता था
और उन्हें राम से छीन लेना चाहता था। हनुमान सीता माता
को राम के पास वापस ले जाना चाहते थे। वासना का अर्थ है
स्वार्थ और प्रेम का अर्थ है ईश्वर की सेवा। किस तरह सेवा की
भावना इंद्रिय तृप्ति की प्रवृत्ति में परिवर्तित हो जाती है ? और
किस तरह जीव काम वासना की प्रवाह में बह जाता है ?
(गीता 3.37)

क.बुद्धि के उपयोग द्वारा

ग.स्वतंत्रता के दुरुपयोग द्वारा

ख.साधनों के दुरूपयोग द्वारा

घ.आवश्यकता से अधिक ऐश्वर्य द्वारा

Answers

Answered by shishir303
16

इस प्रश्न का सही उत्तर है, विकल्प...

(घ) आवश्यकता से अधिक ऐश्वर्य द्वारा

Explanation:

आवश्यकता से अधिक ऐश्वर्य के कारण मनुष्य जीवन कामवासना के प्रवाह में बह जाता है। क्योंकि जब जीव को आवश्यकता से अधिक ऐश्वर्य का भोग करने को मिलता है, तो वह उस ऐश्वर्या में ही रम जाता है। उसकी बुद्धि और विवेक काम करना बंद कर देते हैं, और वह ऐश्वर्य को ही सब कुछ समझने लगता है। उसकी बुद्धि वासना और विषय वस्तु में ही सीमित हो जाती है और वह कामवासना के प्रवाह में बहता चला जाता है। इसके लिए आवश्यकता से अधिक ऐश्वर्य ही जीव को कामवासना की प्रवाह में धकेलने के लिए उत्तरदायी होता है।

Answered by tanmayojha798
1

साधुओं के दुरुपयोग द्वारा

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