5. आनंदी ने अपने बिखेरते हुए परिवार को कैसे समेटा?
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परम पूज्य गुरुदेव-वन्दनीया माताजी अपने परिजनों को प्रेम-आत्मीयता के साथ दिव्य पोषण देते रहे हैं। सबके व्यक्तित्व में उत्कृष्टता, भावनाओं एवं विचारों में श्रेष्ठता के दिव्य तत्त्व भरते रहे हैं। सबके दुःखों-कष्टों में वे हमेशा साथ रहकर धीरज एवं हिम्मत बढ़ाते रहे हैं। अब वे सभी परिजन अपनी अनुभूतियों को, अपनी गुरुसत्ता के दिव्य अनुदानों को अभिव्यक्त कर रहे हैं। इस जन्म शताब्दी की विशिष्ट वेला में वे किसी भी प्रकार उनके अनुदानों का ऋण उतारने की बड़ी कसक लिये हुए हैं।
- आप सबकी श्रद्धा-भावना, समर्पण-साधना और अधिक बढ़े, इसी भाव से उनके दिव्य संस्मरणों को ‘‘ऋषि युग्म की झलक झाँकी’’ नाम की इस पुस्तक में आप सबके सम्मुख लाया जा रहा है। निश्चित ही यह पुस्तक संग्रहणीय होगी। यह हर कठिन अवसर पर प्रेरणा-प्रकाश देने वाली एवं जीवन जीने की कला समझने में बहुत उपयोगी सिद्ध होगी, ऐसा हमारा सुनिश्चित विश्वास है।
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