5. बाजार को सार्थकता भी वही मनुष्य देता है जो जानता है कि वह क्या चाहता है। और जो नहीं जानते
कि वे क्या चाहते हैं, अपनी 'पर्चेजिंग पावर' के गर्व में अपने पैसे से केवल एक विनाशक शक्ति शैतानी
शक्ति, व्यंग्य की शक्ति ही बाजार को देते हैं। न तो वे बाजार से लाभ उठा सकते हैं. न उस बाजार
को सच्चा लाभ दे सकते हैं। वे लोग बाजार का बाजारूपन बढ़ाते हैं। जिसका मतलब है कि कपट बढ़ाते
हैं। कपट की बढ़ती का अर्थ परस्पर में सद्भाव की घटी। इस सद्भाव के हास पर आदनी आपस में
भाई-भाई और मुहद और पड़ोसी फिर रह ही नहीं जाते हैं और आपस में कोरे गारक और बेचक को
तरह व्यवहार करते हैं। मानो दोनों एक-दूसरे को ठगने की घात में हों। एक की हानि में दूसरे का अपना
लाभ दीखता है और यह बाज़ार का, बल्कि इतिहास का सत्य माना जाता है: ऐसे बाजार को बीच में लेकर
लोगों में आवश्यकताओं का आदान-प्रदान नहीं होता; बल्कि शोषण होने लगता है तब कपट सफल होता
है, निष्कपट शिकार होता है। ऐसे बाजार मानवता के लिए विडंबना हैं और जो ऐसे बाजार का पोषण करता
है, जो उसका शास्त्र बना हुआ है; वह अर्थशास्त्र सरासर आँधा है वह मायावी शास्त्र है वह अर्थशास्त्र
अनीति-शास्त्र है
1- बाजार को सार्थकता कौन देता है ?
2- परचेसिंग पावर का क्या अर्थ है उस पर गर्व का क्या परिणाम होता है ?
3- बाजार का बाजरूपन कौन लोग बढ़ाते हैं
4- बाबर में कपट कब बढ़ने लगता है
5- लेखक की दृष्टि से अर्थशास्त्र राजनीति शास्त्र कब बन जाता है
Answers
1 - बाजार को सार्थकता कौन देता है ?
➲ बाजार को सार्थकता भी वही मनुष्य देता है जो जानता है कि वह क्या चाहता है।
2 - परचेसिंग पावर का क्या अर्थ है उस पर गर्व का क्या परिणाम होता है ?
➲ परचेसिंग पावर वह है, जब व्यक्ति के पास अथाह धन होने पर वह बाजार से कुछ भी खरीदने के की सामर्थ्य रखता है। 'पर्चेजिंग पावर' के गर्व में व्यक्ति पैसे से केवल एक विनाशक शक्ति शैतानी शक्ति, व्यंग्य की शक्ति ही बाजार को देते हैं।
3 - बाजार का बाजरूपन कौन लोग बढ़ाते हैं ?
➲ परचेसिंग पावर रखने वाले लोग को बाजार के बाजारूपन को बढ़ाते हैं।
4 - बाजार में कपट कब बढ़ने लगता है ?
➲ जब परचेसिंग पावर वाले व्यक्ति बाजार में छाने लगते हैं तो बाजार मे कपट बढ़ने लगता है।
5 - लेखक की दृष्टि से अर्थशास्त्र अनीति शास्त्र कब बन जाता है ?
➲ जब बाजार में लोगों में आवश्यकताओं का आदान-प्रदान नहीं होता, बल्कि शोषण होने लगता है,जब बाजार में कपट सफल होने लगता है, निष्कपट शिकार होता है। ऐसे बाजार मानवता के लिए विडंबना बन जाते हैं, और ऐसे बाजार का पोषण करने वाला शास्त्र मायावी शास्त्र है वह अर्थशास्त्र अनीति-शास्त्र है।
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