5) बेकारी की समस्या पर निबंध इन हिन्दी
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हमारी दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली के अतिरिक्त जनसंख्या वृद्धि ने बेरोजगारी की समस्या को और भी अधिक जटिल बना दिया है । देश में उपलब्ध संसाधनों की तुलना में जनसंख्या वृद्धि का अनुपात कहीं अधिक है । यदि जनसंख्या को नियंत्रित रखा गया होता तो बेकारी की समस्या इतनी तीव्रता से न उठ खड़ी होती ।
एक भयानक संकट जो किसी भी राष्ट्र के जीवन को प्रभावित कर सकता है वह है बेरोजगारी की समस्या । हमारे देश में बेरोजगारी विश्व के उन्नत देशों से बिल्कुल भिन्न है । सुविकसित देश जैसे यू.एस.ए. और यू.के. प्रायः संघर्ष अथवा चाक्रिक बेरोजगारी से पीड़ित होते हैं, परन्तु भारत में यह एक स्थायी लक्षण है । वास्तव में यह एक बहुपक्षीय परिदृश्य है तथा हाल ही के वर्षों में इसने एक गम्भीर रूप धारण कर लिया है ।
इसलिये भारत में बेरोजगारी का स्वरूप बहुत जटिल है । भूतपूर्व राष्ट्रपति वी. वी. गिरी के अनुसार यह एक रूप से यह मानवीय साधनों की घोर व्यर्थता है जो किसी देश के आर्थिक विकास की गति को रोक देती है और इसके लिये अति शीघ्र सुधारक कार्यवाही की आवश्यकता है ।
सामान्य रूप से बेरोजगारी वह स्थिति है जब कोई व्यक्ति किसी उत्पादक कार्य में लाभप्रद रूप से नियोजित नहीं होता । इसका अर्थ है कि वह व्यक्ति बेरोजगार है जो मजदूरी के लिये कोई काम ढूंढ रहा है परन्तु अपनी क्षमता के अनुसार कार्य खोजने में असमर्थ है । इस दृष्टिकोण से स्वैच्छिक और अनैच्छिक बेरोजगारी का अनुमान लगाया जा सकता है ।
स्पष्टतया किसी अर्थव्यवस्था में, कार्यरत जनसंख्या का एक भाग होता है जो किसी लाभप्रद कार्य में रुचि नहीं रखता तथा कुछ लोग ऐसे होते हैं जो श्रम बाजार में प्रचलित मजदूरी दर से ऊंचे दरों पर कार्य करने में रुचि रखते हैं । केन्ज ने इस किस्म की श्रम-शक्ति को स्वैच्छिक बेरोजगारी कहा है ।
उसके मतानुसार, अनैच्छिक बेरोजगारी ऐसी स्थिति से सम्बन्धित है, जिसमें लोग प्रचलित मजदूरी दरों पर कार्य करने को तैयार होते हैं परन्तु उन्हें वह मजदूरी नहीं मिलती । ऐसी स्थिति प्रायः विश्व के पूंजीवादी देशों में विद्यमान होती है ।