Economy, asked by sobiyafirdous, 5 months ago

5.
:निभंध:
१. पर्यावरण और प्रदुशण - के बारे में

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Answered by Anonymous
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प्राचीन काल से ही पर्यावरण और विकास में घनिष्ठ संबंध पाया जाता है तथा इन दोनों को आपस में एक.दूसरे का पूरक माना जाता है। पर्यावरण में मुख्य रूप से पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, जीव-जन्तु, जल, वायु, मिट्टी, भूमि, मनुष्य, आदि को शामिल किया जाता है। पर्यावरण को नुकसान पहुंचाकर विकास किया जाए तो वह विकास सतत न होकर भावी पीढ़ियों के लिए घातक व विनाशकारी साबित होगा। अतः टिकाऊ विकास के लिए जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, मिट्टी प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, मरूस्थलीकरण, औद्योगिकरण, नगरीयकरण, वन विनाश, ग्लोबल वार्मिंग, मिट्टी में बढ़ती लवणता व क्षारीयता की मात्रा, ओजोन परत का क्षरण, अम्लीय वर्षा आदि से बचने के लिए अथक प्रयास किए जाने चाहिए।

पर्यावरण प्रदूषण के विभिन्न आयाम

प्रदूषण की समस्या के कई प्रकार हैं। जैसे जल प्रदूषण की समस्याए वायु प्रदूषण की समस्याए मिट्टी का कटाव व उर्वरता का अभाव, वन विकासए जैव विविधता का अभाव, ग्लोबल वार्मिंग, ओजोन परत का क्षरण। इनके कारण कुछ प्रदूषण की समस्या अन्तर्राष्ट्रीयए राष्ट्रीय व राज्य स्तरों के अलावा अन्य छोटे स्तरों जैसे जिला व ग्राम स्तर पर भी व्याप्त है।

आधुनिक युग में प्रदूषण की समस्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इसका मुख्य कारण तीव्र गति से जनसंख्या में वृद्धि होना है। इस बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए भरण.पोषण एवं जीवन की सामान्य सुविधाएं उपलब्ध कराने की दृष्टि से वैज्ञानिक व तकनीकी ज्ञान का उपयोग करते हुए संसाधनों का तीव्र गति से अन्धाधुन्ध दोहन किया जा रहा है। जिसके फलस्वरूप प्राकृतिक वातावरण में ग्लोबल वार्मिंगए ओजोन परत का क्षरणए अम्लीय वर्षा, प्रदूषण, औद्योगिकरण, नगरीयकरण इत्यादि अनेक समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। प्रदूषण की समस्या का निराकरण करना अति आवश्यक है।

कृषि पर प्रभाव : पर्यावरण में प्रदूषण की समस्या तथा तापमान बढ़ जाने के कारण समस्त विश्व का फसल चक्र प्रभावित होगा। जिससे खाद्यान्न संकट उत्पन्न हो जाएगा वायु में CO2 की मात्रा बढ़ने से प्रकाश संश्लेषण की दर बढ़ेगी जिससे पादपों की वृद्धि दर तीव्र होगी लेकिन इसका लाभ प्राप्त नहीं होगा।

हरित गृह प्रभाव

वायुमण्डल में कुछ प्रदूषित गैसों की मात्रा बढ़ जाने से पृथ्वी की उष्मा बाहर उत्सर्जित नहीं हो पाती है जिससे पृथ्वी के तापमान में निरन्तर वृद्धि हो रही है। इस प्रभाव को ग्रीन हाऊस प्रभाव कहते हैं। ग्रीन हाऊस प्रभाव उत्पन्न करने वाली मुख्य गैसें CO2 जलवाष्प, मिथेन, नाइट्रस ऑक्साइड आदि है। लेकिन CO2 प्रमुख हरित गृह गैस है।

ओजोन परत का क्षरण : पृथ्वी के धरातल से 35 किलोमीटर की ऊंचाई पर ओजोन गैस की अधिकता होती है। ओजोन गैस की परत सूर्य से आने वाली पैरावैंगनी किरणों को पृथ्वी तक पहुंचने से रोकती है। ओजोन परत में सान्द्रण स्थिर रहता है। किन्तु वायु में कुछ ऐसे पदार्थ हैं जैसे क्लोरोफ्लोरो कार्बनए नाइट्रिक ऑक्साइड एवं क्लोरीन आदि जो ओजोन परत को हानि पहुंचाते हैं। ये पदार्थ ओजोन क्षरण पदार्थ कहलाते हैं ओजोन परत का क्षरण निम्न प्रकार से होता हैः.

1. क्लोरोफ्लोरो कार्बन से क्षरण : रेफ्रिजरेटरए एयर कण्डीशनर निर्माण एवं एयरोसॉल आदि में ब्व्2 का उपयोग किया जाता है। ये यौगिक हल्के एवं कम क्वथनांक के होते हैं। जिसके परिणामस्वरूप ये शीघ्र ओजोन परत तक पहुंच जाते हैं और मुक्त होकर ओजोन परत का क्षरण करते हैं।

2. नाइट्रिक ऑक्साइड से क्षरण : पराध्वनिक वायुयानों द्वारा वायु में नाइट्रिक ऑक्साइड छोड़े जाते हैं। ये ओजोन परत का क्षरण करते हैं।

ओजोन परत के क्षरण के विपरीत प्रभाव : यदि ओजोन परत इसी तरह पतली होती रही तो वह पैराबैंगनी किरणों को पृथ्वी तक पहुंचने से नहीं रोक सकेगी और मानव जीवन इस प्रकार से प्रभावित होगा-ओजोन अल्पता से पृथ्वी के तापमान में वृद्धि होगी। पैराबैंगनी किरणों के प्रभाव से त्वचा कैंसर हो जाता है। आनुवंशिक लक्षणों में परिवर्तन होगा। मानव रक्त स्पन्दन क्रिया कम हो जाएगी। पेड़.पौधों में प्रकाश संश्लेषण की दर कम हो जाएगी। ओजोन के कारण अम्लीय वर्षा को बढ़ावा मिलेगा। त्वचा की रक्त कणिकाएं अधिक रक्त वहन करेंगी जिससे त्वचा लाल होकर सूज जायेगी।

जल प्रदूषण की समस्या के अलावा जल संकट भी गम्भीर प्रदूषण की समस्या मानी जा रही है। पानी मनुष्य व पशुओं के पीने के लिए आवश्यक होता है। कृषि में सिंचाईं के लिए भवन निर्माण के लिएए बाग-बगीचों में पानी देने के लिए तथा उद्योगों के लिए जल की आवश्यकता होती है। इन सभी कार्यों के लिए प्रायः जल की पर्याप्त सप्लाई नहीं हो पाती है। निरन्तर अकाल व सूखा पडने से भूजलस्तर निरन्तर नीचे गिरता जा रहा है। कुछ जगह जल खारा है जो पीने योग्य नहीं है। प्रदूषित जल पीने के परिणामस्वरूप टाईफाईड, हैजा, दस्त आदि रोग हो जाया करते हैं। साथ ही सफाई के अभाव में ये बिमारियां और उग्र रूप धारण कर लेती हैं। बडे शहरों में मलिन बस्तियों की संख्या बढने से बीमारियों की संख्या में बढ़ोतरी होती रहती है।

वायु प्रदूषण : भारत में मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्रों में लकड़ी व गोबर जलाने से जो धुआं निकलता है उससे घर के अन्दर वायु प्रदूषण की समस्या हो जाती है। घर के बाहर वायु प्रदूषण ऊर्जा के उपयोगए वाहनों का धुआं निकलने व औद्योगिक उत्पादन के कारण फैलता है। वायु प्रदूषण की समस्या के बढ़ने से निमोनियाए ह्रदयरोग तथा श्वास सम्बन्धी रोग अधिक बढ़े हैं। कमजोर स्वास्थ्य वाले लोग इससे शीघ्र प्रभावित होते हैं। वायु प्रदूषण का असर श्वास नली के द्वारा फेफड़ों में इन्फेक्शन पर अधिक पड़ा है। इसमें ह्रदय गति रूकने से मनुष्य की मौत हो जाती है। भारत और नेपाल के अध्ययनों से पता चला है कि बायोमास के धुएं से श्वास नली की बीमारी बढ़ी है। गाड़ियों से धुआं निकलने से वायु प्रदूषण की समस्या बढ़ी है।

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