5. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
(क) सवेरा होने पर प्रकृति में क्या-क्या परिवर्तन होते हैं?
Answers
Answer:
Ara Bhai English ma write kara na
hindi ma kaha da write kara
please please mark me brainlist
Answer:
परिवर्तन , प्रकृति का शाश्वत नियम है ,
हर घडी , हर पल बदल रहा है , यह सृष्टि का चक्र है ,इसके साथ ताल- मेल रखने के लिए, हमें समय के साथ निरंतर बदलाव लाना है ,चाहे जीवन में कितने भी उतार -चढाव आये , हमें बस निरंतर चलना है , नदी का पानी अगर बहता ही रहता है तो स्वच्छ निर्मल रहता है , अगर वह पानी बहने के जगह रुक जाये तो वह पानी एक तालाब का रूप ले लेता है और यही रूकावट एक दिन गन्दा पानी में तब्दील हो जाता है , नदी का पानी उतार चढाव के साथ या सर्पाकार होकर निरंतर बहते रहता है ,नदी का हर मोड़ के साथ बहना ही उसका निरंतर परिवर्तन है, ठीक हमारा जीवन भी समय के साथ परिवर्तित होते रहता है , उस समय की परिस्थिति से अपनी स्थिति का तालमेल रखने के लिए हमें अपने आप में परिवर्तन लानाआवश्यक है, इसलिए हमें परिवर्तन से डरना नहीं चाहिए बल्कि परिवर्तन के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना चाहिए तभी सफलता हासिल होगी अगर जीवन में प्रगति चाहते हो तो परिवर्तन होना स्वाभाविक है उसका हमें स्वीकार करना चाहिए, जैसे हर रात के बाद दिन होना स्वाभाविक है, वैसे परिवर्तन हमारे जीवन में एक स्वर्णिम सवेरा बनकर आता है जो हमारे जीवन में नव- निर्माण का कार्य करता है , " जीवन में आने वाली हर नई - परिस्थिति हमारे लिए वर्तमानमें परीक्षा और भविष्य में शिक्षा का कार्य करती है," जिसके अनुसार हम उस परिस्थिति पर विचार कर भविष्य के लिए सतर्क हो जाते है , हाँ.. परिवर्तन का अंतराल थोड़ा कठिनाई भरा जरूर होता है, लेकिन हम परिवर्तन से डरे तो उन्नति भी बिना परिवर्तन संभव नहीं है.
हम बहुत कुछ चाहते है की, यह दुनिया बदल जाये , सामने वाला अगर अपने में ऐसा परिवर्तन करता है तो वह सुधर जाएगा ,उसने ऐसे नहीं , वैसे करना चाहिए था लेकिन वह मेरी बात कहा मानता है, बस ... में तो तंग हो गया हूँ , इस तरह की सोंच अगर आप रखते हो की, दुनिया बदले तो में बदलू . तो यह गलत होगा, दूसरे को बदलने के चक्कर में हम स्वयं में बदलाव लाने की जगह बदला लेने की भावना में आ जाते है हमें एक हमेशा आदत होती है की, हम अवगुण दूसरों मे देखते है और अच्छाई अपने आप में देखते है और हम दूसरों की अच्छाई के बदले अवगुण को उठाते है, वास्तव में हमें चाहिए की, कमी-कमजोरी स्वयं में तलाश कर उसे तुरंत निकाल देना चाहिए और दूसरों मे जो अच्छाई है उसे उठाना चाहिए, एक हंस जो है वह हमेशा कीचड़ से मोती चुगता है और कौआ सिर्फ गन्दगी पसंद करता है , तो हम अपने आप को चेक करे की, में कौन हूँ ! हंस या कौआ , जो हमेशा दूसरों मे विशेषता देखकर वही विशेष गुण अपने में धारण कर स्वयं को परिवर्तित करता है वही महात्मा ,दिव्यात्मा बनता है, हम बाहर से स्वयं को कितना भी सजा ले ,अगर आप में अच्छाई के गुण नहीं है तो वह आपके चेहरे और चलन से दुनिया वालों को जरूर दिखाई देगा, आपका चेहरा ही दुनिया के लिए आयना है,आप अपनी असलियत दीर्घ काल तक दुनिया से छिपा नहीं सकते , जितना हम सफलता की ऊँची चोंटी पर चढ़ते हो उतनी सावधानी अधिक रखनी पड़ती है क्योकि गिरने का खतरा उतना ही अधिक हो जाता है, हमारा हर कदम सावधानी और मजबूती से रखना है .
आज कल हम सभी आत्माओं का दुखी होने का एक मात्र कारन है , हम 'स्व' में परिवतन कर स्वतंत्र बनने के बजाय परिस्थिति ( पर.... स्थिति अर्थात दूसरों की स्थिति ) में ज्यादा आकर्षित हो परवश और परतंत्र हो जाते है अर्थात मेरा स्वभाव ,संस्कार , ख़ुशी ,नाराजी का रिमोट कंट्रोल हम दूसरों के हाथ में देते है याने सामने वाले की हाथ की हम कठ पुतली बन जाते है ,वह नाराज है इसलिए में नाराज हूँ ,वह मुझे चिढा कर गया इसलिए में गुस्सा हूँ , मेरी नाराजी का कारण में नहीं ,वह है ,तो हमने "स्व" का परिवर्तन या नियंत्रण नहीं किया लेकिन में परवश हो गया मेरी ख़ुशी और नाराजी की चाबी दूसरों को दे दी. वास्तव में मनुष्य का स्वभाव ,संस्कार , सोच का प्रभाव स्वयं पर ही नहीं बल्कि पेड़ पौधे ,पशु ,पंछी और पांच तत्त्वों पर भी पड़ता है , बीहड़ जंगलों में तपस्चर्या करते तपस्वी का आभा मंडल का प्रभाव आसपास का वातावरण परिवर्तित कर देता है,एक मांसाहारी खूंखार शेर भी तपस्वी के आगे नत मस्तक होकर वापस लौट जाता है, हमारे आसपास के पाँच तत्त्वों का असंतुलन का कारन भी मनुष्य ही है ,आज मनुष्य भौतिक सुख - सुविधा और भोग वस्तुओ के पीछे पड़कर विकारी और दुखी बन पड़े है , कही पर हिंसाचार , अत्याचार ,पापाचार रूपी मनुष्य का नकारात्मकता का प्रभाव सारी सृस्टि पर पड़ता है, जिसके कारन सृष्टि भी अपने पांच तत्त्वोंके जरिये अपना रौद्र रूप दिखाकर तहस - नहस कर देती है , जो हम ऐसे समाचार प्रति दिन पढ़ते है , आप देखते है की ,आज कल पहले से भी ज्यादा लोग मंदिर जाते है ,पूजा पाठ करते है ,तीर्थ यात्राएं आदि करते है परंतु अपने आप में परिवर्तन नहीं लाते , रामायण ,महा भारत ,गीता पाठ आदि ग्रंथोंका 100 बार पठन करते है , सब कुछ अच्छा है ,बहुत सुन्दर है लेकिन वह श्रेष्ठ धारणाये अपने अंदर नहीं लाते बस सब कुछ तोते जैसा रट कर बोलते है, अगर वही बाते हम हमारे जीवन में अपनाते है तो अपने आप में बहुत बड़ा बदलाव महसूस करेंगे ,अगर हम स्वयं बदलेंगे तो सारा परिवार बदलेगा ,परिवार बदलेगा तो सारा समाज बदलेगा ,समाज बदलेगा तो देश बदलेगा और देश बदलेगा तो एक दिन यह विश्व बदलेगा आखिर परिवर्तन की डोरी हमारे हाथ में है ,बस.. शुरुवात मेरे से हो ..हम अपने में जरूर परिवर्तन ला सकते है ,स्वयं को चेक करो की मेरी कहा गलती हो रही है ,मेरे में कौनसे अवगुण है उसे बाहर तुरंत निकालो ,"स्वयं को चेक करो और चेंज करो " एक कहावत भी है ऐसे नर करनी करे तो नर नारायण होय.