Hindi, asked by nisanth1837, 6 hours ago

5 प्रश्न 2. अधोलिखित अपठित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर इन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए- वह तोड़ती पत्थर देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर। वह तोड़ती पत्थर कोई न छायादार पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार श्याम तन, भर बंधा यौवन तन नयन प्रिय, कर्मरत् मन गुरू हथौड़ा हाथ, सामने तंरूमालिका अट्टालिका प्राकार। प्रश्न(1) वह तोड़ती पत्थर से कवि किसका वर्णन कर रहा है। (2) उस स्त्री का रूप कैसा है? (3) कोई न छायादार पेड़ से कवि का क्या मतलब है? (4) उस स्त्री की कार्यशैली कैसी है? (5) "सामने तरू मालिका अट्टालिका प्राकार" से क्या तात्पर्य है ?​

Answers

Answered by shishir303
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(1) 'वह तोड़ती पत्थर' में कवि किसका वर्णन कर रहा है?

✎... ‘वह तोड़ती पत्थर’ में कवि पत्थर तोड़ने वाली एक श्रमिक वर्ग की स्त्री का मजदूर का वर्णन कर रहा है। इस कविता के माध्यम से कवि ने श्रमिक वर्ग की दयनीय स्थिति का स्थिति का सजीव चित्रण किया है। उन्होंने इस कविता के माध्यम से श्रमिकों की दयनीय स्थिति और समाज उच्च वर्ग के द्वारा उनका शोषण किए जाने का सजीव चित्रण किया है।

(2) उस स्त्री का रूप कैसा है?

✎... उस स्त्री का रंग सांवला है और वह यौवन से भरी एक युवा स्त्री है। वह पूरी तन्मयता से अपना काम कर रही है।

(3) 'कोई न छायादार पेड़ से कवि का क्या मतलब है?

✎... ना छायादार पेड़ से कवि का तात्पर्य यह है कि पत्थर तोड़ने वाली स्त्री कड़ी धूप में पत्थर तोड़ रही थी और उस कड़ी धूप में उसके लिए आसपास कोई छायादार पेड़ भी नहीं था, जहाँ काम से थककर वह पल भर के लिए सुस्ता सके।

(4) उस स्त्री की कार्य-शैली कैसी है?

✎... उस स्त्री की कार्य शैली एकदम तन्मयता से अपना कार्य करने की थी। उसकी आँखें नीचे थीं और वह अपने काम में तत्पर थी। वह अपने हाथ में लगातार बड़ा हथौड़ा लेकर लगातार पत्थर पर प्रहार कर रही थी।

(5) 'सामने तरु मालिका अट्टालिका प्राकार' से क्या आशय है?​

✎... ‘सामने तर मालिका अट्टालिका प्राकार’ से आशय यह है कि वह स्त्री कड़ी धूप में पत्थर तोड़ रही है, लेकिन उसके लिए पल-भर सुस्ता लेने के लिए आसपास कोई भी छायादार पेड़ नहीं है, जबकि उसके ठीक सामने ही एक विशाल भवन था, जिसमें पंक्ति में अनेक पेड़ लगे थे।

कवि का कहने का भाव यह है कि गरीबों के लिए कोई भी सुख नहीं है। सुख का उपयोग केवल धनी लोग करते हैं। गरीब व्यक्ति हमेशा कड़ा परिश्रम करने के बावजूद शोषित किए जाते हैं, जबकि साधन संपन्न लोग ऐशो-आराम से जीते हुए हर तरह के सुख का उपभोग करते हैं।

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