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Read the passage given below and answer the questions that follow:
निम्रलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
रावण एक महान योद्धा,साथ ही साथ धुरंधर पंडित और विद्वान भी था। रामचंद्र जी के साथ उसका युद्ध हुआ। एक
भयंकर युद्ध जिसकी लपेट में सोने की लंका भी जली और उसके वंश का नाश भी हुआ।
जब रावण युद्ध में अधिक घायल होने के पश्चात अपनी आखिरी घड़ियाँ गिन रहा था तो रामचंद्र जी ने लक्ष्मण से
कहा, “तुम रावण के पास जाओ। भले ही वह हमारा शत्रु है,लेकिन है तो महाविद्वान। उसकी अंतिम घड़ी करीब है।
उसके पास जाकर उसके जीवन का अनुभव पूछो।" रामचंद्र जी का आदेश था इसलिए लक्ष्मण जी ने उनकी आज्ञा
का पालन किया।
लक्ष्मण रावण के पास पहुंचे और अपने आने का उद्देश्य बताया। रावण कहने लगा, अच्छा हुआ जो तुम यहाँ चले
आए। मैं चाहता था कि लोग मेरे अनुभव से लाभ उठाएँ। इस जीवन में मेरे मन में बहुत इच्छाएँ उत्पन्न हुई,
जिनकी मैंने पूर्ति करनी चाही। इनमें से तीन इच्छाएँ प्रमुख थीं-पहली थी पृथ्वी से आकाश तक की सीढ़ी बनाने की,
दूसरी थी अग्नि में जलाने की शक्ति कम करने की और तीसरी थी मृत्यु पर विजय प्राप्त करने की। मुझे सब कुछ
मिला। प्रसिद्धि विजय, सौभाग्य और वैभव सभी मेरे चरणों में लुटा। पर में अपनी इच्छा पूर्ण न कर पाया। जानते हो
क्यों? क्योंकि इतने भोग-विलास और सुख-समृद्धि की चीजों का स्वामी बनने के बाद मुझ में आलस्य समा गया था।
में समझने लगा कि मेरे लिए सब कुछ संभव है। मैंने आज का काम कल पर छोड़ना शुरू कर दिया। मेरी यही
आदत मुझे ले डूबी। इसी का परिणाम है कि आज मेरा इस तरह नाश हुआ।"
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