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बन्धु भये का दिन कै, को तार्यो रघुराइ ।
तूठे तूठे फिरत हो,झूठे विरद कहाई।
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हे श्रीकृष्ण, अब देखूँगा कि तुम्हारा यश किस तरह (अक्षुण्ण) रहता है! (तुम) गीध (जटायु) को तारकर परक गये थे, किन्तु अब मुझसेआनकर उलझे हो-(मुझ-जैसे अधम को तारो, तो जानूँ!) बंधु भए का दीन के को तार्यौ रघुराइ। तूठे-तूठे फिरत हौ झूठे बिरदु कहाइ॥
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