6
(क) "हे भगवान! तब के लिए ! विपद के लिए! इतना आयोजन! परमपिता की इच्छा
के विरूद्ध इतना साहस! पिताजी, क्या भीख न मिलेगी? क्या कोई हिन्द भ-पृष्ठ
पर न बचा रह जाएगा, जो ब्राह्मण को दो मुट्ठी अन्न दे सके? यह असम्भव है।
फेर दीजिए पिताजी, मैं काँप रही हूँ-इसकी चमक आँखों को अन्धा बना रही है।
Answers
Answered by
1
परमपिता की इच्छा के विरुद्ध इतना साहस। पिताजी, क्या भीख न मिलेगी? क्या कोई हिन्दू भू-पृष्ठ पर न बचा रह जाएगा, जो ब्राह्मण को दो मुट्ठी अन्न दे सके? यह असम्भव है।
Similar questions