.6 'नमक का दरोगा कहानी' 'धन पर धर्म की विजय' की कहानी है। प्रमाण द्वारा स्पष्ट कीजिए। *
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Explanation:
पडित अलोपीदीन धन का उपासक था। उसने हमेशा रिश्वत देकर अपने कार्य करवाए। उसे लगता था कि धन के आगे सब कमज़ोर हैं। वंशीधर ने गैरकानूनी ढंग से नमक ले जा रहीं गाड़ियों को पकड़ लिया। अलोपीदीन ने उसे भी मोटी रिश्वत देकर मामला खत्म करना चाहा, परंतु वंशीधर ने उसकी हर पेशकश को ठुकराकर उसे गिरफ्तार करने का आदेश दिया। अलोपीदीन के जीवन में पहली बार ऐसा हुआ जब धर्म ने धन पर विजय पाई।
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जब नमक का नया विभाग बना और ईश्वरप्रदत वस्तु के व्यवहार करने का निषेध हो गया तो लोग चोरी-छिपे इसका व्यापार करने लगे। अनेक प्रकार के छल-प्रपंचों का सूत्रपात हुआ, कोई घूस से काम निकालता था, कोई चालाकी से । अधिकारियों के पौ-बारह थे। पटवारीगिरी का सर्वसम्मानित पद छोड़-छोड़कर लोग इस विभाग की बरकंदाजी करते थे। इसके दारोगा पद के लिए तो वकीलों का भी जी ललचाता था।
यह वह समय था जब ऐंगरेजी शिक्षा और ईसाई मत को लोग एक ही वस्तु समझते थे। फारसी का प्राबल्य था। प्रेम की कथाएँ और शृंगार रस के काव्य पढकर फारसीदा लोग सर्वोच्च पद पर नियुक्त हो जाया करते थे।
उनके पिता एक अनुभवी पुरुष थे। समझाने लगे बेटा घर की दुर्दशा देख रहे हो। ऋण के बोझ से दबे हुए हैं। लड़कियों हैं, वे घास-फूस की तरह बढती चली जाती है। मैं कगारे पर का वृक्ष हो रहा हूँ, न मालूम कब गिर पड़। अब तुम्ही घर के मालिक मुख्तार हो।
#SPJ3