72. प्राचीनकाल में शिष्य को क्या कहा जाता था ?
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मनु के अनुसार शुश्रूषा से ही विद्या की प्राप्ति होती है। शिष्य प्रायः एक आचार्य को छोङकर दूसरे के यहाँ नहीं जाता था। पतंजलि ने ऐसे शिष्यों को तार्थकाक बताया है, जो एक आचार्य का परित्याग कर दूसरे आचार्य के पास जाते थे
Answer:
प्राचीन काल में शिक्षक को ही गुरु या आचार्य मानते थे और वहां शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को उसका परिवार माना जाता था।
Explanation:
प्राचीन काल में शिक्षक को ही गुरु या आचार्य मानते थे और वहां शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को उसका परिवार माना जाता था।दुनिया बदलने के लिए शिक्षा सबसे मजबूत हथियार है। नेल्सन मंडेला पुरातनकाल से ही शिक्षा हर सभ्यता का जरूरी हिस्सा रही है। समय और बदलते जमाने के साथ शिक्षा का स्वरूप भी बदला है। शिक्षा की एक ऐसी ही प्राचीन प्रणाली जो दुनिया के पूर्वी हिस्से से शुरू हुई और आज भी प्रेरणा का जरिया बनी हुई है वो है गुरुकुल शिक्षा प्रणाली । इस ब्लॉग में हम आपको प्राचीन समय में ले जाएंगे और गुरुकुल शिक्षा प्रणाली को समझाने की कोशिश करेंगे। इसमें मॉडर्न दुनिया से इसके जुड़ाव पर भी बात होगी। गुरुकुल शिक्षा प्रणाली रेजिडेंशियल (residential) शिक्षा प्रणाली का रूप थी, जहां छात्र टीचर या आजार्य के घर यानी गुरुकुल में रहते थे जो शिक्षा का केंद्र हुआ करता था। इस शिक्षा प्रणाली का आधार अनुशासन और मेहनत थे। छात्रों से अपेक्षा की जाती थी कि वो अपने गुरुओं से सीखें और इस जानकारी को जीवन में इस्तेमाल भी करें। इसमें छात्र और टीचर का रिश्ता बहुत पवित्र होता था और अक्सर इसमें किसी तरह का भुगतान नहीं किया जाता था। हालांकि छात्र टीचर को उनके सहयोग के लिए गुरुदक्षिणा जरूर दिया करते थे। गुरुकुल शिक्षा प्रणाली की शुरुआत वैदिक काल में हुई जब किसी भी तरह की शिक्षा प्रणाली नहीं हुआ करती थी। लेकिन स्किल बेस्ड (skill-based) शिक्षा के साथ वेद, पुराण आदि से सीखने का चलन जरूर था। ये अध्यात्मिक किताबें छात्रों को उनकी जानकारी बढ़ाने में मदद करती थीं।
गुरुकुल का अर्थ
गुरुकुल का अर्थ है वह स्थान या क्षेत्र, जहां गुरु का कुल यानी परिवार निवास करता है। प्राचीन काल में शिक्षक को ही गुरु या आचार्य मानते थे और वहां शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को उसका परिवार माना जाता था। गुरुकुल के छात्रों को लिए आठ साल का होना अनिवार्य था और पच्चीस वर्ष की आयु तक लोग यहां रहकर शिक्षा प्राप्त और ब्रह्मचर्य का पालन करते थे।
गुरुकुल शिक्षा प्रणाली अपनी खूबियों के चलते सालों से दुनिया को प्रेरित कर रही है। इस सेक्शन में इस शिक्षा प्रणाली की खासियतों और काम करने के तरीके के बारे में भी बताया गया है।
शिक्षा संस्कृति और धर्म से प्रभावित थी जो प्राचीन भारतीय समाज के अहम तत्व थे।
प्रोफेशनल, सोशल, धार्मिक और अध्यात्मिक शिक्षा पर फोकस करते हुए इसमें समग्र (Holistic) शिक्षा पर जोर दिया जाता था।
गुरुकुल में चुने जाने का आधार बच्चों का ऐटिट्यूड यानी रवैया और मॉरल स्ट्रैंथ यानी नैतिक मजबूती थे जो छात्रों के कंडक्ट या आचरण में नजर आते थे
कला, साहित्य, शास्त्र और दर्शन की जानकारी के साथ छात्रों को व्यावहारिक हुनर भी सिखाए जाते थे और उन्हें अलग-अलग कामों के लिए तैयार किया जाता था।
गुरुकुल शिक्षा प्रणाली से छात्र का पूरी तरह से विकास होता था और जोर शिक्षण के साइकोलॉजिकल या मनोवैज्ञानिक तरीके पर होता था।
गुरुकुल शिक्षा के उद्देश्य
Gurukul Education System कई उद्देश्य पर आधारित थी। यहाँ का मुख्य उद्देश्य ज्ञान विकसित करना और शिक्षा पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित करना होता है। सामाजिक मानकों के बावजूद हर छात्र के साथ समान व्यवहार किया जाता है। इस शिक्षा प्रणाली से मिले निर्देश छात्रों को अपनी तरह की लाइफ बनाने में मदद करते थे। इस तरह से छात्र को जीवन के कठिन समय में भी खुद को दृढ़ता से खड़े रखने में मदद मिलती थी। गुरुकुल शिक्षा प्रणाली के कुछ खास उद्देश्य ये रहे-
सम्पूर्ण विकास Holistic Development
व्यक्तित्व विकास Personality growth
आध्यात्मिक जाग्रति Spiritual Awakening
प्रकृति और समाज के प्रति जागरूकता Awareness about nature and society
पीढ़ी-दर पीढ़ी ज्ञान और कल्चर को आगे बढ़ाना Passing on of knowledge and culture through generations
जीवन में सेल्फ कंट्रोल और अनुशासन Self-control and discipline in life
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अनमोल शिक्षा
यहां पर धर्मशास्त्र की पढाई से लेकर अस्त्र की शिक्षा भी सिखाई जाती है। योग साधना और यज्ञ के लिए गुरुकुल को एक अभिन्न अंग माना जाता है। यहां पर हर विद्यार्थी हर प्रकार के कार्य को सीखता है और शिक्षा पूर्ण होने के बाद ही अपना काम रूचि और गुण के आधार पर चुनता था। उपनिषदों में लिखा गया है कि मातृ देवो भवः ! पितृ देवो भवः ! आचार्य देवो भवः ! अतिथि देवो भवः !
गुरु के महत्व को प्रतिपादित करने के लिए कहा गया है कि गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वर, गुरु साक्षात् परमं ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम:| अर्थात- गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है. गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं।
गुरुकुल में किस प्रकार छात्रों को विभाजित किया जाता है
छात्रों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता है:
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