(8)
जाउँ कहाँ तजि चरन तुज्हारे।
काको नाम पतित-पावन जग, केहि अति दीन पियारे।।1।।
कौन देव बराइ बिरद-हित हठि-हठि अधम उधारे।
खग, मृग, ब्याध, पषान, बिटप जड़, जवन कवन सुर तारे।।
देव, दनुज, मुनि, नाग, मनुज, सब, माया-बिबस बिचारे।
तिनके हाथ दास तुलसी प्रभु, कहा अपनपौ हारे।।3।।
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तलसीदास के व्यक्तित्व एवं कवित्व का परिचय.... इसका विशेष।
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