80-100 शब्दों में भारतीय नारी पर अनुच्छेद।
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अगर हम महिलाओं की आज की अवस्था को पौराणिक समाज की स्थिति से तुलना करे तो यह तो साफ़ दिखता है की हालात में कुछ तो सुधार हुआ है। महिलाएं नौकरी करने लगी है। घर के खर्चों में योगदान देने लगी है। कई क्षेत्रों में तो महिला पुरुषों से आगे निकल गई है। दिन प्रतिदिन लड़कियां ऐसे ऐसे कीर्तिमान बना रही है जिस पर न सिर्फ परिवार या समाज को बल्कि पूरा देश गर्व महसूस कर रहा है।
महिलाओं के उत्थान में भारत सरकार भी पीछे नहीं है। बीते कुछ सालों में सरकार द्वारा अनगिनत योजनाएँ चलाई गयी है जो महिलाओं को सामाजिक बेड़ियाँ तोड़ने में मदद कर रही है तथा साथ ही साथ उन्हें आगे बढ़ने में प्रेरित कर रही है। सरकार ने पुराने वक़्त के प्रचलनों को बंद करने के साथ साथ उन पर क़ानूनन रोक लगा दी है। जिनमें मुख्य थे बाल विवाह, भ्रूण हत्या, दहेज़ प्रथा, बाल मजदूरी, घरेलू हिंसा आदि। इन सभी को क़ानूनी रूप से प्रतिबंध लगाने के बाद समाज में महिलाओं की स्थिति में काफी सुधर आया है। महिला अपनी पूरी जिंदगी अलग अलग रिश्तों में खुद को बाँधकर दूसरों की भलाई के लिए काम करती है।
हमने आज तक महिला को बहन, माँ, पत्नी, बेटी आदि विभिन्न रूपों में देखा है जो हर वक़्त परिवार के मान सम्मान को बढ़ने के लिए तैयार रहती है। शहरी क्षेत्रों में तो फिर भी हालात इतने ख़राब नहीं है पर ग्रामीण इलाकों में महिला की स्थिति चिन्ता करने योग्य है। सही शिक्षा की व्यवस्था न होने के कारण महिलाओं की दशा दयनीय हो गई है। एक औरत बच्चे को जन्म देती है और पूरी जिंदगी उस बच्चे के प्रति अपनी सारी जिम्मेदारियों को निभाती है। बदले में वह कुछ भी नही मांगती है और पूरी सहनशीलता के साथ बिना तर्क किये अपनी भूमिका को पूरा करती है।