अंग्रेजो के खिलाफ संघर्ष के लिए गांधी जी द्वारा नमक को एक हथियार के तौर पर क्यों चुना ग
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सूरत। 6 अप्रैल, 1930 यानी की आज ही के दिन महात्मा गांधी ने दांडी में मुट्ठी भर नमक उठाकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बिगुल बजाया था। गांधी जी ने मार्च 1930 में नमक पर कर लगाए जाने के विरोध में 12 मार्च से 6 अप्रैल तक नमक सत्याग्रह चलाया था। इसके लिए उन्होंने अपने सहयोगियों संग अहमदाबाद से दांडी तक की लगभग 400 किमी की यात्रा की थी। गांधीजी ने ‘नमक सत्याग्रह’ इसलिए शुरू किया था, ताकि लोग स्वयं नमक उत्पन्न कर सकें। समुद्र की ओर इस यात्रा में हजारों की संख्या में भारतीयों ने भाग लिया था। भारत में अंग्रेजों की पकड़ को विचलित करने वाला यह एक सर्वाधिक सफल आंदोलन था जिसमें अंग्रेजों ने 80,000 से अधिक लोगों को जेल भी भेजा था।
हालांकि भारतीय यह इतिहास बहुत अच्छी तरह से जानते हैं लेकिन ये बात शायद बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि गांधीजी ने नमक सत्याग्रह के लिए दांडी गांव को ही क्यों चुना था। अचरज की बात यह भी है कि न तो उस समय नमक यहां नमक बनाया जाता था और न ही आज। बल्कि उस समय यहां पर नमक का निर्माण कुदरती तरीके से होता था और इसी नमक का उपयोग यहां के बाशिंदे किया करते थे।
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मुगलों के समय हिंदुओं से 5% और मुसलमानों से 2.5% नमक कर लिया जाता था। 1759 में ब्रिटिशों ने जमीन की लगान दुगनी कर दी और नमक के परिवहन पर भी कर लगा दिया। 1767 को तंबाकु और नारियल के बाद 7 अक्टूबर 1768 को नमक पर भी कंपनी के एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया। 1772 में वारेन हेस्टिंग्स ने नमक कर को फिर से कंपनी के अंतर्गत कर दिया। उसने इसके लिए एजेंट बनाए। कंपनी सर्वाधिक बोली लगाने वालों को पट्टों पर जमीन देती थई। इसने मजदूरो के शोषण को जन्म दिया। 1788 में नमक थोक विक्रेताओं को निलामी लगाकर दी जाने लगी। इसने नमक के दाम को एक रुप्ए से बढ़ाकर 4 रूप्ए कर दिया। यह अत्यधिक दर्दनाक स्थिति थि जिसमें केवल कुछ लोग ही नमक के साथ भोजन करने में समर्थथ थे। 1802 में उड़िसा के विजय के बाद अंग्रेजों ने नमक के उत्पादन पर कर बढ़ा दिया और मलंगी कर्ज में डूबकर दास बनते गए। 19वीं सदी के आरंभ में नमक कर को अधिक लाभदायक बनाने के लिए और उसकी तस्करी को रोकने के लिए इस्ट इंडिया कंपनी ने जाँच केंद्र बनाए। जी एच स्मिथ ने एक सीमा खिंची जिसके पार नमक के परिवहन पर अधइक कर देना पड़ता था। 1869 तक यह सीमा पूरे भारत में फैल गई। 2300 मील तक सिंधु से मद्रास तक फैले क्षेत्र में लगभग 12 हजार लोग तैनात किए गए थे। यह कांटेदार झाड़ियों पत्थरों, पहाड़ों से बनी सीमा थी जिसके पार बिना जाँच के नहीं जाया जा सकता था। 1923 में लॉर्ड रीडिंग के समय नमक कर को दुगुना करने का विधेयक पास किया गया। 1927 में पुनः विधेयक लाया गया जिसपर विटो लग गया। 1835 के नमक कर आयोग ने अनुसंशा की कि नमक के आयात को प्रोत्साहित करने के लिए नमक पर कर लगाया जाना चाहिए। बाद में नमक के उत्पादन को अपराध बनाया गया। 1882 में बने भारतीय नमक कानून ने सरकार को पुनः एकाधिकार स्थापित करा दिया। 12 मार्च 1930 को 78 अनुयायियों के साथ मांधी साबरमती से दांडी चले। और 6 अप्रैल 1930 को नमक कानून तोड़ दिया।