Hindi, asked by sonamkumari9927, 11 months ago

प्रेमचंद की कहानियों का विषय क्या है?

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Answered by Kannan0017
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Answer:

प्रेमचंद हिंदी के ऐसे लेखक हैं जिन्होंने अपने युग की विराट समस्याओं को सशक्त और युगांतकारी शैली में प्रस्तुत किया है। उन्होंने अपने समय के समाज, राजनीति, अर्थव्यवस्था, संस्कृति सबको व्यापक फलक पर साहित्यिक जीवंतता और सरसता के साथ प्रस्तुत किया । वे अपने युग की मृतप्राय व्यवस्था को उधेड़कर सबके सामने सर्वग्राह्य ढंग से रख सके। उन्होंने यथास्थितिवादी व्यवस्था में घुटती और मरती हुई इंसानियत की ओर सबका ध्यान खींचा । वे साहित्य में संवदेना को इतना ओर-पोर भर सके कि उसे आम आदमी के लिए प्रिय बना सके । उन्होंने वास्तविक ग्रामीण भारत के बहुत से पक्षों पर लिखा, कहानी और उपन्यास-जैसी लोकप्रिय विधाओं में लिखा और स्वयं को तथा युग को उलट पलटकर लिखा। वे साहित्य को जीवन के क्रमशः निकटतर लेते गए और जीवन तथा साहित्य को एकमेक करने का विराटतर उदाहरण प्रस्तुत करते गए। वे भारतीय जीवन के जीवंत क़लमकार के रूप में हुए हैं।

मुंशी प्रेमचंद निबंध

मुंशी प्रेमचंद पर निबंध

जीवन से जूझता संघर्षरत जीवन:

प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई, 1880 को वाराणसी के पास ‘लमही’ नामक ग्राम में हुआ था । इनके पिता अजायब राय डाकख़ाने में क्लर्क थे । प्रेमचंद जब 8 वर्ष के थे तभी उनकी माँ आनन्दी देवी का स्वर्गवास हो गया । प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपतराय था किंतु साहित्य के क्षेत्र में वे अपने आपको प्रेमचंद के नाम से प्रस्तुत करने लगे और हिंदी साहित्य के अमर प्रेमचन्द हो गए । प्रेमचंद के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, परिवार का पालन-पोषण मुश्किल से ही हो पाता था । वे गाँव में रहते थे इसलिए गरीबी से एवं गाँव की समस्याओं से उनका सीधा वास्ता था। प्रेमचंद ने जैसे-तैसे बी.ए. पास किया, फिर वे एक स्कूल में अध्यापक हो गए, कुछ समय बाद सब डिप्टी-इंसपेक्टर भी हो गए । सन् 1921 में आप नौकरी छोड़कर ‘असहयोग आंदोलन’ में कूद पड़े । आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण पुनः अध्यापन करने लगे थे । इसी बीच आप साहित्य-सृजन में भी लगे रहे । बीच-बीच में आपने ‘मर्यादा’, ‘माधुरी,, ‘हंस’ तथा ‘जागरण’ आदि पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया । प्रेमचंद ने उर्दू में ‘नवाब राय’ के नाम से अनेक कहानियाँ लिखीं तथा शुरू में उर्दू में ही लिखना प्रारंभ किया किंतु बाद में वे हिंदी में लिखने लगे । आर्थिक संकट से मुक्ति पाने के लिए प्रेमचंद फिल्मी कहानियाँ लिखने के लिए मुंबई गए किंतु वहाँ का जीवन उन्हें पसंद नहीं आया और वे पुनः वाराणसी आ गए। जीवन-पर्यन्त प्रेमचन्द दरिद्रता से ही जूझते रहे । अत्यन्त दयनीय अवस्था में आपका स्वास्थ्य खराब हो गया तथा हिंदी साहित्य का यह समर्थ लेखक 1936 में इस संसार से सदा के लिए विदा हो गया।

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दशकों में फैला विविधामय कथा साहित्य: प्रेमचंद

प्रेमचंद ने प्रारंभ में उर्दू में ‘सोज़े वतन‘ नामक पुस्तक लिखी जिसने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ऐसी हलचल उत्पन्न की कि उनकी यह रचना अंग्रेज़ी शासन ने ज़ब्त कर ली। बाद में प्रेमचंद हिंदी में कहानियाँ लिखने लगें। पंच परमेश्वर, बड़े भाईसाहब, नमक का दारोगा, कफ़न, परीक्षा, शतरंज के खिलाड़ी, मंत्र, पूस की रात आदि प्रेमचंद की उन 300 कहानियों में से प्रसिद्ध कहानियाँ हैं जो उन्होंने लगभग 24 संग्रहों में प्रकाशित की हैं ।कहानियों के अलावा प्रेमचंद ने निर्मला, प्रेमाश्रम, कर्मभूमि, गबन, सेवासदन, रंगभूमि, गोदान आदि उपन्यास भी लिखे । प्रेमचंद के उपन्यास न केवल संख्या की दृष्टि से बल्कि भारतीय जनजीवन को निकटता के साथ चित्रित करने की दृष्टि से हिंदी साहित्य की अमर निधि हैं। गोदान तो बीसवीं शताब्दी की भारतीय साहित्य की उत्कृष्ट रचना है। वह भारतीय किसान के त्रासद जीवन का करुण महाकाव्य है । वह अपने युग के विपन्न, शोषित समाज की प्रसव-वेदना है । वह हिंदी साहित्य का विशाल परिवर्तनकारी साहित्यिक शिला-स्तम्भ है । गोदान और उनके अन्य उपन्यासों को मिली ख्याति के आधार पर प्रेमचन्द को ‘उपन्यास सम्राट’ कहा जाता है। ‘मंगल सूत्र’ प्रेमचंद का अन्तिम और अधूरा उपन्यास है। प्रेमचंद ने कर्बला, संग्राम, प्रेम की वेदी आदि नाटक भी लिखे हैं जिनमें राष्ट्रीय भावना, हिंदू-मुस्लिम समन्वय तथा मानव प्रेम के दर्शन होते हैं । ‘कुछ विचार’ तथा ‘साहित्य का स्वरूप’ निबंध-संकलनों में उन्होंने साहित्य एवं समाज से संबंधित अपने विचारों को व्यक्त किया है।

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