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IN LARTIAL
-Kh10.
1110th
|InthlhhakhaloneIII.
भूमण्डलीकरण के गरीबी एवं आर्थिक विषमता पर प्रभाव की चर्चा कीजिए।
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Answer:
सारांश
कहा जाता है कि ‘‘धरती मानव की नहीं होती बल्कि मानव धरती का होता है।’’ किन्तु मानव जाति ने बिना कुछ समझे सदैव अपने लाभ के लिये इस अमूल्य धरा पर नियंत्रण करने और उसका शोषण करने का प्रयास किया है। इस धरा पर बढ़ती जनसंख्या और अपने जीवन स्तर के उन्नयन की मनुष्य की लगातार बढ़ती आकांशा के फलस्वरूप नये-नये तकनीकी आविष्कार हुए हैं। इन सभी आविष्कारों और नवाचारों ने जीवन को अधिक आरामदेय तो बना दिया, लेकिन इसके बदले, भोजन, वायु, जल खनिज एवं ऊर्जा की मांग बढ़ गई है। किन्तु इन नवीकरण की पृथ्वी की क्षमता सीमित होने के कारण ये संसाधन भी सीमित है।
वर्तमान में हमारे इस जीवमण्डल के प्राकृतिक संसाधनों का तेजी से क्षरण ने यहाँ वैश्विक जलवायु में गम्भीर परिवर्तन किये हैं, जो मानव एवं अन्य प्राणी जातियों के अरित्व पर गम्भीर प्रभाव पड़े हैं। जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूल नहीं हो पाने के कारण डायनासोर व अन्य जीव अपना अस्तित्व न बचा सके हैं। प्राकृतिक, मशीनी व नृवैज्ञानिक प्रक्रियाओं जैसे कार्बन डाइआक्साइड, मीथेन आदि ग्रीन हाउस गैसों के कारण जीव मण्डल की जलवायु में हुए दीर्घ कालिक परिवर्तनों को जलवायु परिवर्तन कहा जाता है। ये गैस वायुमण्डल में जमा होकर तापमान को बढ़ाती है और इससे जलवायु में परिवर्तन होता है।
ऋतु परिवर्तन, वैश्विक तापमान वृद्धि, समुद्र स्तर में वृद्धि, फसल चक्र में परिवर्तन, आदि अन्य जलवायु परिवर्तन न केवल हमारे बल्कि हमारे बच्चों और बच्चों के बच्चों के लिये भी भूस्खलन, सूनामी, महामारी, पलायन एवं स्वास्थ्य के लिये बड़ी आपदायें हैं।
अतः इस विषय पर महात्मा गाँधी जी ने कहा था, कि ‘‘धरती पर सभी की आवश्यकताओं के लिये पर्याप्त संसाधन है, उनके लालच के लिये नहीं,’’ भविष्य की रक्षा करने व भावी पीड़ा को प्राकृतिक विरासत सौपने के लिये पूरा विश्व एक साथ आ रहा है, इसलिये हम ऐसी दुनिया बनाने की आशा कर रहे हैं जहाँ हर किसी की आवश्यकता के लिये संसाधन तैयार कर सके।
प्रस्तावना
जलवायु वैज्ञानिकों का कहना है कि हाल के वर्षों में जिस तेजी से भारत में जलवायु परिवर्तन हो रहा है उतनी तेजी से पिछले 100 वर्षों में कभी नहीं हुआ। यहाँ के वर्तमान कार्बन उत्सर्जन की दर को देखते हुए वैज्ञानिकों ने अंदेशा जताया है कि वर्ष 2030 तक भारत का औसत तापमान लगभग 1° बढ़ जायेगा। यदि जलवायु परिवर्तन का यहि हाल रहा तो गर्मियों में भारत के उत्तर में कश्मीर व उत्तराखण्ड में हिम नहीं दिखायी देंगे। इस प्रकार यदि जीवमण्डल में मौजूद कार्बन-डाइऑक्साइड की मात्रा को कम करने के लिये समय रहते कारगर कदम नहीं उठाये गये तो यहाँ की नदियों का जल स्तर बढ़ेगा, भयंकर आंधियाँ, तूफान, बाढ़, के साथ-साथ असहनीय गर्मी यहाँ के लोगों को झेलनी होगी।
अध्ययन का उद्देश्य
प्रस्तुत अध्ययन का प्रमुख उद्देश्य भारत में जलवायु परिवर्तन का मानवीय स्वास्थ्य पर पड़ते हानिकारक प्रभाव की तरफ ध्यान आकर्षित करना।
विधि तंत्रः- प्रस्तुत अध्ययन में अवलोनात्मक एवं वर्णनात्मक विधितंत्रों का प्रयोग करते हुए भारत में बढ़ते जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की विवेचना प्रस्तुत की है।
अध्ययन क्षेत्रः- भारत एक चतुर्भुजाकार की आकृति में 8°4‘‘ उत्तरी अक्षांश से 37°6’’ उत्तरी अक्षांश तक एवं 68°7’’ पूर्वी देशान्तर से 97°25’’ पूर्वी देशान्तर के बीच विस्तृत है। इस क्षेत्र की जलवायु उष्ण कटिबंधीय मानसूनी प्रकार की है। इस क्षेत्र में उत्तर व उत्तर पूर्व, द. एवं दक्षिण पूर्व तथा मध्य भाग वर्तमान में जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप ताप वृद्धि के कारण बाढ़ एवं नयी-नयी बिमारियों की चपेट में आ रहे हैं। इन सब समस्याओं की वजह जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ता तापमान है। जलवायु परिवर्तन से विकास की गति के लिये बड़ा खतरा अब भारत में भी उत्पन्न हो गया है। इसका पहला चरण यहाँ बाढ़, सूखा, गर्म हवाएँ, चक्रवात, आंधी, समुद्र की लहरें आदि है और वहीं दूसरे कारण (अवसंरचना, दायरा और सेवाओं) परितंत्रो का क्षरण या बदलाव, खाद्यान्न उत्पादन में गिरावट, जल उपलब्धता की कमी तथा आजिविका पर नकारात्मक प्रभाव आदि हैं। इसका कारण लोगों की प्राकृतिक और मानव जनित आपदाओं की चपेट में आने की आशंकाएँ बढ़ रही है।
अतः भारत में जलवायु परिवर्तन से बढ़ती समस्याओं के निस्तारण हेतु संयुक्त राष्ट्र महा सभा की 70वीं वर्ष गाँठ पर अमेरिका में बोलते हुए मोदी जी ने पर्यावरण का जिक्र करते हुए कहा कि अगर हम जलवायु परिवर्तन की चिन्ता करते हैं तो यह हमारे नीजि सुख को सुरक्षित करने की बू आती है, लेकिन यदि हम क्लाइमेट जस्टिस की बात करते हैं, तो गरीबों को प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षित रखने का एक संवेदनशील संकल्प उभरकर आता है। क्योंकि जलवायु परिवर्तन का दुष्प्रभाव सबसे ज्यादा इन्हीं निर्धन व वंचित लोगों पर होता है। जब प्राकृतिक आपदा आती है, तो ये बेघर हो जाते हैं, जब भूकम्प आता है, तो इनके घर तबाह हो जाते है।
जब सूखा पड़ता है उसका भी सबसे ज्यादा प्रभाव इन्हीं लोगों पर होता है, इसीलिये मैं मानता हूँ कि चर्चा जलवायु परिवर्तन की बजाए जलवायु न्याय पर हो। अतः हमें क्लाइमेट चेंज की चुनौती से निपटने में उन समाधानों पर बल बल देने की आवश्यकता है, जिनसे हम अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल हो सके। साथ ही एक ग्लोबल एजुकेशन प्रोग्राम शुरू करने की आवश्यकता है, जो हमारी अगली पीढ़ी को प्रकृति के क्षरण एवं संवर्धन के लिये तैयार कर सके क्योंकि ऐसा किये बिना शान्ति, न्यायोचित व्यवस्था और सतत विकास सम्भव नहीं हो सकता है।