अंक पर
रुद्ध कौष है, सुब्ध सूच
अंगना- अंग पर लिपटे भी
आँवक-
कॉप
रहे है।
धनी, वज्र-गार्जन से बादल।
त्रस्व नयन-मुख दाप' रहे हैं:
जीर्ण बाहु. है गीण करीर,
तुझे बुलाता कृषक अधीर,
से विप्लव के वीर ।
चूस
उसका सार,
हाड-मात्र ही है आप्पार,
जिया
है
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