अ) 'मनुष्य जीवन में अहिंसा का महत्त्व', इस विषय पर अपने विचार लिखिए।
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जब कभी ' अहिंसा ' पर चर्चा होती है , भगवान बुद्ध और महात्मा गांधी को याद किया जाता है। अक्सर देखा गया है कि धर्म प्रवर्तक उपदेश तो देते हैं , लेकिन खुद वे उन पर चल नहीं पाते। यह बात महावीर , बुद्ध व गांधी पर लागू नहीं होती। इन तीनों ही युग पुरुषों ने अहिंसा के महत्व को समझा , उसकी राह पर चले और इसके अनुभवों के आधार पर दूसरों को भी इस राह पर चलने को कहा। अहिंसा की पहचान उनके लिए सत्य के साक्षात्कार के समान थी। अपने युग में यज्ञों में होने वाली हिंसा से महावीर के मन को गहरी चोट पहुंची , इसलिए उन्होंने अहिंसा का सिद्धांत प्रस्तुत किया। इसके प्रचार के लिए उन्होंने श्रमणों का संघ तैयार किया , जिन्होंने मनुष्य जीवन में अहिंसा के महत्व को बताया। सामान्यत: अहिंसा का अर्थ किसी प्राणी की मन , वचन व कर्म से हिंसा न करना होता है। आदमी में अनेक बुराइयां पाई जाती हैं , जिनकी गिनती करना असंभव है। इन बुराइयों की जड़ में मुख्य पांच दोष मिलेंगे। बाकी सभी दोष इन्हीं से पैदा होते हैं। ये दोष हैं चोरी , झूठ , व्यभिचार , नशाखोरी व परिग्रह यानी धन इकट्ठा करना। इन्हीं बुराइयों के कारण मनुष्य न जाने और किन-किन बुराइयों में लगा रहता है। हिंसा इनमें सबसे बड़ी बुराई है। हिंसा , अहिंसा की विरोधी है। इसका अर्थ सिर्फ किसी प्राणी की हत्या या उसे शारीरिक चोट पहुँचाना ही नहीं होता। महावीर ने इसका व्यापक अर्थ किया कि यदि कोई आदमी अपने मन में किसी के प्रति बुरी भावना रखता है , बुरे व कटु वचन बोलता है , तो वह भी हिंसा ही करता है। सभी प्राणी जीना चाहते हैं , अहिंसा उनको अमरता देती है। अहिंसा जगत को रास्ता दिखाने वाला दीपक है। यह सभी प्राणियों के लिए मंगलमय है। अहिंसा माता के समान सभी प्राणियों का संरक्षण करने वाली , पाप नाशक व जीवन दायिनी है। अहिंसा अमृत है। इस प्रकार महावीर ने अहिंसा की व्याख्या की। तपस्या के बाद महावीर ने समदर्शी होकर मौन भंग किया और कहा , ' मा हण , मा हण ' अर्थात किसी प्राणी को मत मारो , मत मारो। किसी का छेदन न करो , न करो। किसी को कष्ट न पहुंचाओ। मारोगे तो मरना पड़ेगा। छेदोगे तो छिदना पड़ेगा , भेदोगे तो भिदना पड़ेगा। दुख पहुंचाओगे तो दुख सहना पड़ेगा। मानवता के उत्थान व विस्तार का माध्यम ही अहिंसा है। अहिंसा ही विश्वशांति उत्पन्न करेगी। यही कारण है कि जैन धर्म में अहिंसा को ही धर्म व सदाचार की कसौटी माना गया है। इस प्रकार अहिंसा जैन संस्कृति की प्राण शक्ति है , जीवन का मूलमंत्र है , अहिंसा परमधर्म है व अहिंसा वीरता की सच्ची निशानी है।