a poem in hindi on river
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नदी निकलती है पर्वत से,
मैदानों में बहती है.
और अंत में मिल सागर से,
एक कहानी कहती है.
बचपन में छोटी थी पर मैं,
बड़े वेग से बहती थी.
आँधी-तूफान, बाढ़-बवंडर,
सब कुछ हँसकर सहती थी.
मैदानों में आकर मैने,
सेवा का संकल्प लिया.
और बना जैसे भी मुझसे,
मानव का उपकार किया.
अंत समय में बचा शेष जो,
सागर को उपहार दिया.
सब कुछ अर्पित करके अपने,
जीवन को साकार किया.
बच्चों शिक्षा लेकर मुझसे,
मेरे जैसे हो जाओ.
सेवा और समर्पण से तुम,
जीवन बगिया महकाओ.
hope it helped u
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और अंत में मिल सागर से,
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आँधी-तूफान, बाढ़-बवंडर,
सब कुछ हँसकर सहती थी.
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it is not very big and meaningful.
hope you like it.
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