a short essay on our india's 6 seasons in hindi
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★ ग्रीष्म ऋतु अपने नाम के अनुसार गर्म व तपन से भरी मानी जाती है। इस ऋतु में रातें छोटी व दिन लम्बे होते हैं। ग्रीष्म ऋतु में मौसमी फलों; जैसे- जामुन, शहतुत, आम, खरबूजे, तरबूज आदि फलों की बहार आई होती है। अत्यधिक गरमी के कारण लोग परेशान व बेहाल हो जाते हैं। लोग इस समय नींबू पानी, लस्सी और बेलपथरी का रस पीकर गरमी को दूर भागने का प्रयास करते हैं।
★ वर्षा कि बौछार तपती धरती को शीतलता प्रदान करती है। जहाँ एक ओर लोगों के लिए यह मस्ती से भरी होती हैं, वहीं दूसरी ओर किसानों के लिए बुआई का अवसर लाती है। चावलों की खेती के लिए तो यह उपयुक्त मानी जाती है। यह ऋतु प्रेम व रस की अभिव्यक्ति के लिए अच्छी मानी जाती है। इसे ऋतुओं की रानी कहा जाता है।
★ इसमें करवाचौथ, नवरात्रें, दुर्गा-पूजा, दशहरा व दीपावली आदि त्यौहारों का ताँता लग जाता है। इस ऋतु में दिन छोटे होने लगते हैं। शरद् के तुरंत बाद हेमंत ऋतु अपना रूप दिखाना आरंभ करती है। सरदी बढ़ने लगती है। दिन और छोटे होने लगते हैं।
★ हेमंत के समाप्त होते-होते शिशिर ऋतु का प्रकोप आरंभ हो जाता है। कड़ाके कि ठंड पड़ने लगती है। लोगों का सुबह-सवेरे काम पर निकलना कठिन होने लगता है। अत्यधिक ठंड से व कोहरे से जन-जीवन अस्त-व्यस्त होने लगता है। इस ऋतु के आगमन के साथ दिन बड़े व रातें छोटी हो जाती हैं। धूप का असली मज़ा इसी ऋतु में लिया जा सकता है। गर्म चाय के साथ रजाई में बैठकर इस ऋतु का आनंद लेने का अपना ही मज़ा है।
★ शिशिर ऋतु के जाते ही सबके दरवाजों पर वसंत ऋतु दस्तक देने लगती है। इस ऋतु से वातावरण मोहक व रमणीय बन जाता है। यह ऋतु रसिकों की ऋतु कहलाती है। प्राकृतिक की आभा इसी ऋतु में अपने चरम सौंदर्य पर देखी जा सकती है। चारों तरफ फल व फूलों की बहार देखते ही बनती है। यह ऋतु हर जन-मानस का मन हर लेती है। इसकी ऋतु की सुंदरता के कारण ही इस ऋतु को ऋतुओं का राजा भी कहा जाता है।
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प्रत्येक ऋतु की कालावधि दो मास की होती है। ग्रीष्म ऋतु या गर्मी की ऋतु में सूर्य का आतप अपने परम बिंदु पर होता है। भयंकर गर्मी, लू तथा तपती धूप से पृथ्वी तवे की तरह तपने लगती है। पेड़-पौधों की हरियाली नष्ट हो जाती है। ग्रीष्म की भयंकर तपन के बाद वर्षा की सजल ऋतु आती है। बादल झुक-झुककर धरती को अपनी रसवर्षा से सरस बना देते हैं। ग्रीष्म के भयंकर ताप से झुलसी प्रकृति हरियाली से भरी-पूरी हो जाती है। सावन के झूले और कजली के गीतों से पूरा वातावरण झूम जाता है। आकाश में ऐसे काले बादल छा जाते हैं कि चारों तरफ अँधेरा-सा हो जाता है।
वर्षा ऋतु के बाद शरद ऋतु; न अधिक गर्मी न सर्दी। शरद ऋतु का मौसम सुहावना होता है। शरदकाल का चंद्रमा अपनी निर्मल चाँदनी के लिए जाना जाता है। कवियों ने इस ऋतु को ‘शरद् सुंदरी’ की संज्ञा दी है। विजयादशमी और दीपावली इस ऋतु में आनेवाले प्रमुख त्योहार हैं। शरद के बाद सर्दी बढ़कर बदन को कंपकंपाने लगती है और भूमंडल पर प्रकाश और ऊर्जा का संवाहक सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर से दक्षिणी गोलार्द्ध की ओर जाने लगता है। हेमंत ऋतु आती है, जाड़ा आ जाता है। हेमंत के बाद जनवरी मास में पड़नेवाले मकर संक्रांति पर्व से शिशिर ऋतु का आगमन होता है। शिशिर पतझड़ की ऋतु कही जाती है, इसे वसंत-दूत भी कहते हैं। पेड़ों के पुराने पत्ते झड़कर नए पत्तों के आने अर्थात् बसंत के आगमन की सूचना देते हैं। बसंत इस प्रकार वृक्षों एवं वनस्पतियों को प्राचीनता से नवीनता की ओर अग्रसर कर देता है। बसंत में पेड़-पौधों में पुष्प, तालाबों में कमल, स्त्रियों में कामदेव का वास और हवा में सुगंध भर जाती है। रातें सुखयुक्त और दिन रम्य हो जाते हैं। इस प्रकार सब कुछ प्रियता को प्राप्त हो जाता है।