a small paragraph in hindi on "sach bolna jaruri hai"
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प्रकाश का पढ़ाई में बिल्कुल मन नहीं लगता था। खेल-कूद में भी वह सबसे हार जाता था। घर पर माता-पिता से बहुत डाँट खाता था। उसका बड़ा भाई भी उसे बहुत समझाता था कि तू पढ़ाई में मन लगाया कर। पर बहुत कोशिश करने पर भी उसका मन नहीं लगता था। उसे कुछ समझ में नहीं आता था। माता-पिता भी उसे समझा-समझाकर हार चुके थे। उन्हें बहुत दुःख होता था कि प्रकाश में कोई भी गुण नहीं है।
एक दिन उसके विद्यालय में प्रतियोगिता रखी गयी। उसमें सभी बच्चों को भाग लेना जरूरी था। एक-एक कर मंच पर आकर किसी के बारे में बोलना था, जिसे सबसे ज्यादा अच्छे से जानते हों। किसी ने महात्मा गाँधी पर बोला, तो किसी ने स्वामी विवेकानन्द पर, किसी ने मदर टेरेसा पर बोला तो किसी ने भगत सिंह पर। सभी बहुत अच्छा बोल रहे थे। प्रकाश के भाई ने ‘माँ’ पर बोला। सभी को उसका बोला हुआ बहुत ही अच्छा लगा। प्रकाश मन ही मन डर रहा था कि वो किस पर बोलेगा, वो तो किसी के बारे में कुछ जानता ही नहीं है।
अब उसकी बारी आई। उसने बोलना शुरू किया, “मैं सबसे ज्यादा अपने आप को जानता हूँ। मेरे बारे में बोलने को बहुत कुछ है। पर सब बुरा ही बुरा है। मुझे वो दोहा याद आ रहा है,
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा ना मिलिया कोय।
जो मन देखा आपना, मुझसे बुरा ना कोय।।
इसका अर्थ है, ‘मैं बुरा व्यक्ति ढूँढने निकला, तो मुझे कोई बुरा नहीं मिला, लेकिन मैंने जब अपना मन देखा, तो मुझसे बुरा दुनिया में कोई नहीं मिला’। स्कूल में टीचर को दुखी करता हूँ, घर में मम्मी-पापा को। दिन भर दोस्तों को दुखी करता हूँ और रात में भाई को। मेरा पढ़ने में मन नहीं लगता, खेल-कूद मेरी समझ में नहीं आते। मैं क्या करूँ, मुझे कुछ समझ में नहीं आता। सार बात ये है कि मुझ में कोई भी गुण नहीं है।”प्रकाश बोलता जा रहा था। उसके माता-पिता दुखी हो रहे थे कि ये क्या बोले जा रहा है! उसके बाद और भी कई बच्चों ने बोला। अन्त में प्रधानाध्यापक ने परिणाम घोषित किया। पहला इनाम प्रकाश को ही मिला। सभी को आश्चर्य हुआ।
प्रधानाध्यापक बोले, “प्रकाश ने जो भी बोला, सच बोला। कुछ छिपाया नहीं। सही है, व्यक्ति अपने आपसे ज्यादा किसी को नहीं जानता। उसके माता-पिता को उस पर गर्व होना चाहिए कि इतना साफ़ मन का बच्चा है उनका। सब कहते हैं प्रकाश में कोई गुण नहीं है। लेकिन उसमें सबसे बड़ा गुण है कि उसका मन साफ़ है, वह सच बोलता है। सच बोलना तो बहुत बड़ा गुण है।”
सब कुछ सुनकर उसके माता-पिता को बहुत ख़ुशी हुई, उन्हें भी अपने बच्चे के इस गुण का पता चला। प्रकाश के मन में भी अब जोश आया, उसे भी बहुत अच्छा लगा।
अब सब उससे अच्छे से बात करने लगे थे। प्रधानाध्यापक ने सभी अध्यापकों से कहा कि प्रकाश पर ज्यादा ध्यान देकर इसे पढ़ाएँ। अब उसका मन भी थोड़ा-थोड़ा पढ़ने में लगने लगा। इस तरह बड़े होकर उसने सच्चाई के बल पर माता-पिता का नाम रौशन किया।