India Languages, asked by avanishukla2007, 7 months ago

A story on guru bhakti in sanskrit.

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Answered by Ayushiprogod1000
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Answer:

पुराने समय में ज्ञान सम्पन्न गुरु और योग्य शिष्यों को बहुत ही सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है ।

➠ कुलीन राजघरानों और ब्राहमणों के पुत्र शिक्षा प्राप्त करने के लिए गुरुकुल और आश्रमों की शरण लिया करते थे । उन दिनों आमोद धौम्य (Dhaumya) नामक एक ज्ञान सम्पन्न गुरु थे जो अपने शिष्यों के परम आदरणीय थे । गुरु धौम्य ज्ञान और पुरुषार्थ दोनों की ही शिक्षा प्रदान करते थे इसलिए उनके पास निर्धन और सम्पन्न दोनों ही वर्गों के शिष्य आया करते थे । वह बिना भेदभाव के समान रूप से उन्हें शिक्षा प्रदान करते थे । आश्रम का खर्च शिष्यों द्वारा की गयी कृषि से ही चलता था । शिष्यों को आत्मनिर्भरता का पाठ पढाने के लिए ही गुरु धौम्य ने उन्हें कृषि करने की आज्ञा दी थी ।

➠ वैदिक ज्ञान , कृषि और अनुशासन आदि क्षेत्रों में गुरु धौम्य (Dhaumya) के शिष्यों का कोई मुकाबला नहीं था फिर भी उनकी ऑंखें किसी योग्य शिष्य को तलाशती रहती थी । एक बार इंद्र के प्रकोप के कारण भीषण वर्षा हुयी । जल और थल का भेद मिटने लगा था । लगता था प्रलय आकर ही रहेगा । गुरु धौम्य अपने सभी शिष्यों के साथ चिंतित खड़े वर्षा रुकने की प्रतीक्षा कर रहे थे और वर्षा रुकने का नाम नहीं ले रही थी ।

➠ उन्होंने अपने शिष्यों से कहा :- “लगता है इस भीषण वर्षा के कारण हमारी फसल नष्ट हो जायेगी और इस वर्ष आश्रम का खर्च नहीं चल पायेगा ।”

➠ गुरु द्वारा चिंता व्यक्त किये जाने पर भी किसी शिष्य ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की । इस भीषण वर्षा से भला कोई कर भी क्या सकता था ? पीछे खड़े एक शिष्य ने प्रश्न किया “गुरुदेव ! क्या इस समस्या का कोई समाधान भी है ।” यह आरुणि (Aruni) था ।

➠ “हां आरुणि (Aruni) समाधान है ” गुरु धौम्य (Dhaumya) ने आत्मविश्वास के साथ कहा “यदि समय रहते खेत की मेड की मरम्मत कर दी जाए तो फसल को नष्ट होने से बचाया जा सकता है किन्तु इस प्रलयकारी वर्षा और ठंडी घनघोर रात्रि में कौन साहस करेगा खेत तक जाने का ।”

➠ “हम सब मिलकर जायेंगे गुरुदेव ” आरुणि (Aruni) ने पूर्ण उत्साह के साथ कहा पर किसी भी शिष्य के मुंह से एक भी शब्द नहीं निकला । गुरु आमोद धौम्य (Dhaumya) इस मौन का कारण समझ चुके थे ।

➠ वे बोले “वत्स आरुणि (Aruni) तुम अकेले खेत की मेड ठीक नहीं कर पाओगे ।”

“गुरुदेव ! आप आज्ञा दीजिये मैं प्रयास करके देखना चाहता हूँ ।”

“नहीं वत्स ! मैं तुम्हे अकेले जाने की आज्ञा नहीं दे सकता ” गुरु ने गहरी साँस भरकर कहा ।

➠ आरुणि दृढ़ता से बोला “आप ही कहते हैं कि बिना प्रयास किये हार नहीं माननी चाहिए फिर मैं इस वर्षा से कैसे हार मान सकता हूँ ।”

➠ गुरु धौम्य (Dhaumya) ने आरुणि (Aruni) के प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दिया । आरुणि ने गुरु के मौन को उनकी स्वीकृति माना और वह सर्दी की उस भयावह रात्रि में वर्षा की परवाह किये बिना अकेला ही खेतों की ओर निकल पड़ा ।

➠ आरुणि (Aruni) जब खेतों के निकट पहुंचा तो वर्षा का पानी बाढ़ का रूप लेकर खेत की मेड से टकरा रहा था । आरुणि ने अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगाकर मिटटी एकत्रित की और मेड की दरार में भर दी । पानी का बहाव बहुत तीव्र था तथा जो दरार आरुणि ने भरी थी वह ओर भी चौड़ी हो चुकी थी ।

➠ आरुणि (Aruni) दरार भरने के जो भी प्रयास करता उसका प्रभाव उल्टा ही पड़ता । उसके सामने गुरु जी का चिंतित चेहरा घूम रहा था । उनके मौन में छुपी उनकी विवशता नजर आ रही थी । आरुणि (Aruni) किसी बड़े शिलाखंड की खोज कर रहा था जिसे वह दरार में लगाकर पानी को रोक सके । जब उसे कोई शिलाखंड न मिला तो स्वयं एक मजबूत शिला बनकर दरार के आगे लेट गये । वर्षा के पानी में अब इतनी शक्ति नहीं थी जो उस अभेद्य दुर्ग को भेद सके ।

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