अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी पर निबंध
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संसार में हिंदी बोलने वालों की संख्या चीनी भाषा के उपरांत द्वितीय क्रम पर आंकी गई है, परंतु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भाषा की प्रतिष्ठा केवल उस भाषा को बोलने वालों की संख्या पर आधारित नहीं होती है, वरन अनेक प्रतिमानों पर निर्भर करती है. इनमें प्रमुख हैं:
संसार में हिंदी बोलने वालों की संख्या चीनी भाषा के उपरांत द्वितीय क्रम पर आंकी गई है, परंतु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भाषा की प्रतिष्ठा केवल उस भाषा को बोलने वालों की संख्या पर आधारित नहीं होती है, वरन अनेक प्रतिमानों पर निर्भर करती है. इनमें प्रमुख हैं:अ. उपयोगकर्ताओं की संख्या एवं उनका क्षेत्रीय विस्तार :
संसार में हिंदी बोलने वालों की संख्या चीनी भाषा के उपरांत द्वितीय क्रम पर आंकी गई है, परंतु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भाषा की प्रतिष्ठा केवल उस भाषा को बोलने वालों की संख्या पर आधारित नहीं होती है, वरन अनेक प्रतिमानों पर निर्भर करती है. इनमें प्रमुख हैं:अ. उपयोगकर्ताओं की संख्या एवं उनका क्षेत्रीय विस्तार :ब. उपलब्ध साहित्य की व्यापकता एवं उसका स्तर:
संसार में हिंदी बोलने वालों की संख्या चीनी भाषा के उपरांत द्वितीय क्रम पर आंकी गई है, परंतु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भाषा की प्रतिष्ठा केवल उस भाषा को बोलने वालों की संख्या पर आधारित नहीं होती है, वरन अनेक प्रतिमानों पर निर्भर करती है. इनमें प्रमुख हैं:अ. उपयोगकर्ताओं की संख्या एवं उनका क्षेत्रीय विस्तार :ब. उपलब्ध साहित्य की व्यापकता एवं उसका स्तर:स. अन्तर्राष्ट्रीय सम्पर्कों, सेवाओं एवं वाणिज्य में उपयोग:
संसार में हिंदी बोलने वालों की संख्या चीनी भाषा के उपरांत द्वितीय क्रम पर आंकी गई है, परंतु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भाषा की प्रतिष्ठा केवल उस भाषा को बोलने वालों की संख्या पर आधारित नहीं होती है, वरन अनेक प्रतिमानों पर निर्भर करती है. इनमें प्रमुख हैं:अ. उपयोगकर्ताओं की संख्या एवं उनका क्षेत्रीय विस्तार :ब. उपलब्ध साहित्य की व्यापकता एवं उसका स्तर:स. अन्तर्राष्ट्रीय सम्पर्कों, सेवाओं एवं वाणिज्य में उपयोग:द. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में प्रचलन:
संसार में हिंदी बोलने वालों की संख्या चीनी भाषा के उपरांत द्वितीय क्रम पर आंकी गई है, परंतु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भाषा की प्रतिष्ठा केवल उस भाषा को बोलने वालों की संख्या पर आधारित नहीं होती है, वरन अनेक प्रतिमानों पर निर्भर करती है. इनमें प्रमुख हैं:अ. उपयोगकर्ताओं की संख्या एवं उनका क्षेत्रीय विस्तार :ब. उपलब्ध साहित्य की व्यापकता एवं उसका स्तर:स. अन्तर्राष्ट्रीय सम्पर्कों, सेवाओं एवं वाणिज्य में उपयोग:द. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में प्रचलन:य. भाषा से सम्बंधित देश का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक एवं सामरिक महत्व:
संसार में हिंदी बोलने वालों की संख्या चीनी भाषा के उपरांत द्वितीय क्रम पर आंकी गई है, परंतु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भाषा की प्रतिष्ठा केवल उस भाषा को बोलने वालों की संख्या पर आधारित नहीं होती है, वरन अनेक प्रतिमानों पर निर्भर करती है. इनमें प्रमुख हैं:अ. उपयोगकर्ताओं की संख्या एवं उनका क्षेत्रीय विस्तार :ब. उपलब्ध साहित्य की व्यापकता एवं उसका स्तर:स. अन्तर्राष्ट्रीय सम्पर्कों, सेवाओं एवं वाणिज्य में उपयोग:द. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में प्रचलन:य. भाषा से सम्बंधित देश का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक एवं सामरिक महत्व: यदि किसी भाषा के उपयोगकर्ता सीमित क्षेत्र में रहता हैं, तो भाषा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उतनी महत्वपूर्ण नहीं होगी, जितनी उन्हीं उपयोगकर्ताओं के विस्तृत क्षेत्र में बसे होने पर होगी। किसी भाषा के साहित्य का बहुआयामी होना एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उसकी स्वीकार्यता उस भाषा को प्रतिष्ठित करते हैं। किसी भाषा को प्रतिष्ठित करने में सबसे अधिक महत्वपूर्ण होता है अन्तर्राष्ट्रीय सम्पर्कों, सेवाओं, एवं वाणिज्य में उस भाषा के उपयोग की स्थिति। वर्तमान युग विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का युग है एवं कोई भाषा इनमें अपना स्थान बनाये बिना महत्वपूर्ण नहीं हो सकती है। भाषा का महत्व बहुत कुछ उसे बोलने वाले देश के आर्थिक एवं सामरिक महत्व पर भी निर्भर करता है।
संसार में हिंदी बोलने वालों की संख्या चीनी भाषा के उपरांत द्वितीय क्रम पर आंकी गई है, परंतु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भाषा की प्रतिष्ठा केवल उस भाषा को बोलने वालों की संख्या पर आधारित नहीं होती है, वरन अनेक प्रतिमानों पर निर्भर करती है. इनमें प्रमुख हैं:अ. उपयोगकर्ताओं की संख्या एवं उनका क्षेत्रीय विस्तार :ब. उपलब्ध साहित्य की व्यापकता एवं उसका स्तर:स. अन्तर्राष्ट्रीय सम्पर्कों, सेवाओं एवं वाणिज्य में उपयोग:द. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में प्रचलन:य. भाषा से सम्बंधित देश का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक एवं सामरिक महत्व: यदि किसी भाषा के उपयोगकर्ता सीमित क्षेत्र में रहता हैं, तो भाषा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उतनी महत्वपूर्ण नहीं होगी, जितनी उन्हीं उपयोगकर्ताओं के विस्तृत क्षेत्र में बसे होने पर होगी। किसी भाषा के साहित्य का बहुआयामी होना एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उसकी स्वीकार्यता उस भाषा को प्रतिष्ठित करते हैं। किसी भाषा को प्रतिष्ठित करने में सबसे अधिक महत्वपूर्ण होता है अन्तर्राष्ट्रीय सम्पर्कों, सेवाओं, एवं वाणिज्य में उस भाषा के उपयोग की स्थिति। वर्तमान युग विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का युग है एवं कोई भाषा इनमें अपना स्थान बनाये बिना महत्वपूर्ण नहीं हो सकती है। भाषा का महत्व बहुत कुछ उसे बोलने वाले देश के आर्थिक एवं सामरिक महत्व पर भी निर्भर करता है।