Psychology, asked by PragyaTbia, 1 year ago

अंतर- समूह द्वंद्व के कुछ कारण क्या है? किसी अंतरराष्ट्रीय संघर्ष पर विचार कीजिए I इस संघर्ष की मानवीय कीमत पर विचार कीजिए I

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Answered by TbiaSupreme
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"अंतर-समूह द्वंद्व के निम्नांकित कारण हैं।

(1) दोनों पक्षों में परस्पर संवाद का अभाव अंतर-समूह द्वंद्व का कारण बन सकता है।  दोषपूर्ण एवं मिथ्या जानकारी से  युक्त संप्रेषण भी संदेह  एवं अविश्वास को जन्म देता है जो अंतर-समूह द्वंद्व का कारण बनता है।

(2) जब एक समूह के अंदर ईर्ष्या एवं असंतोष का भाव उत्पन्न होता है वह दूसरे समूह को देखकर यह सोचता है कि दूसरे समूह के पास जो है वो उनके पास क्यों नहीं। पारस्परिक तुलना एवं असंतुष्टि का यह भाव भी अंतर-समूह द्वंद्व को जन्म देता है।

(3) दोनों पक्षों का स्वयं को दूसरे से बेहतर समझना भी अंतर-समूह द्वंद्व का कारण बनता है। हर पक्ष अपना वर्चस्व बनाना चाहता है। वह सोचता है कि वह ही बेहतर है वह जो कुछ करता है कि वही ठीक है। अपना वर्चस्व बनाने की यही भावना दो पक्षों में अंतर-समूह द्वंद्व का कारण बनती है।

(5) हर समूह की अपनी-अपनी विचारधारा होती है। विचारधाराओं का टकराव दो समूहो में अंतर-समूह द्वंद्व का कारण बनता है। उनमें छोटे-छोटे मतभेद होते हैं और ये छोटे-छोटे मतभेद बड़े-बड़े अंतर-समूह द्वंद्व में बदल जाते हैं।

(4) पूर्व में घटित किसी घटना के कारण एक समूह द्वारा दूसरे समूह के नुकसान के कारण उत्पन्न हुई कटुता भी दो समूहों में अंतर-समूह द्वंद्व का कारण बनती है।

(5) एक दूसरे समूह के प्रति पूर्वाग्रह पाल लेना भी समूहों में अंतर्द्वंद्व का कारण बनता है।

(6) एक शोध के अनुसार लोग अकेले की अपेक्षा समूह में जब समूह के रूप में कार्य करते हैं तो अधिक आक्रामक हो जाते हैं और उनमें प्रतिस्पर्धात्मक भावना अधिक तीव्र हो जाती है यही कारण समूहो में अंतर-समूह द्वंद्व का कारण बनता है।

(7) किसी तरह किसी भी तरह की असमानता चाहे वो  सामाजिक, आर्थिक या सांस्कृतिक हो, तो समूह में अंतर-समूह द्वंद्व का कारण बनती है।

द्वंद्व किसी भी समाज के एक अच्छा संकेत नहीं है। द्वंद्व कैसा ही हो, किसी भी रूप में हो उसकी कीमत सब को चुकानी पड़ती है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी हमने देखा है कि बड़े-बड़े युद्ध हुए हैं। प्रथम विश्वयुद्ध, द्वितीय विश्वयुद्ध आदि। लेकिन अंत में इनका परिणाम क्या हुआ, इसकी कीमत किस को चुकानी? पड़ी मानव को। आखिर इसमें जनधन की ही हानि हुई जिसकी भरपाई अभी तक नहीं हो पाई है। हम यह कह सकते हैं कि द्वंद्वों की कीमत आखिर में मानव को चुकानी पड़ती ही है।"

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